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दर्द भरी गज़ल

          दर्द भरी गज़ल दर्द तो उमड़ा बहुत आँसुओं  में बह जाने के लिए हम तो बस हँसते रहे आँसुओं को छुपाने के लिए । ज़िंदगी को दर्दे अश्क़ का हर रंग दिखाने के लिए  दिल में कर लिया हर दर्द जज़्ब मुस्कुराने के लिए  मेरी तकलीफ़ों का अंदाज़  भला क्यूँ हो किसी को ख़ुद को ही भूला दिया जब उसे भूल जाने के लिए । दर्द तो उमड़ा बहुत आँसुओं  में बह जाने के लिए हम तो बस हँसते रहे आँसुओं को छुपाने के लिए । हर नई सुबह संग लाती साथ  रातें सुलाने के लिए  पलकों पे बिछाती मीठे ख़ाब  रातें रिझाने के लिए   जागूँ या सोऊँ,तड़पूँ क्या फ़र्क़ पड़ता है किसी को नींद भी होती कोसों दूर सारी रात तड़पाने के लिए । दर्द तो उमड़ा बहुत आँसुओं  में बह जाने के लिए हम तो बस हँसते रहे आँसुओं को छुपाने के लिए । जब ख़्वाहिशों का कर दिया क़त्ल जमाने के लिए  कर ली तन्हाईयों से दोस्ती  दिल बहलाने के लिए  ढाती हूँ कितना ज़ुल्म ख़ुद पर क्या पता किसी को कैसे कट रही ज़िन्दगी दुनिया को दिखाने के लिए । दर्द तो उमड़ा बहुत आँसुओं...