रविवार, 21 अप्रैल 2024

बचपन कितना सलोना था

बचपन कितना सलोना था---                                          

मीठी-मीठी यादें भूली बिसरी बातें पल स्वर्णिम सुहाना 
नटखट भोलापन यारों से कुट्टी-मिठ्ठी झूठा मूठा बहाना
वक्त की गर्द में अल्हड़ भरी मस्ती खुशियों का खजाना
जाने कहाॅं खो गया प्यारे बचपन का प्यार भरा जमाना।
 
सखिन संग आंख मिचौली नीम वृक्ष की कड़वी निबौरी
चाॅंद छूने की ख्वाहिश सपनों की उड़ान पतंग की डोरी
ना कल की फिक्र ना शिकवा किसी से ना कोई निहोरी
ना गर्मी, लू की परवा तितली उड़ाना घूमना खोरी-खोरी।

जब जवां हुए शान्ति खोये गयी आजादी बचपन वाली
मां के आॉंचल का ममत्व खोया रह गया पुलाव ख्याली
परिजनों का दुलार खो गया व्यंजनों के खुश्बू की थाली
पापा के कांधे का मस्ती खोये झूला पड़ा नीम की डाली।

बचपन की खट्टी-मीठी यादें बचपन कितना सलोना था
बारिश में कागज की नाव बहाना हर मौसम सुहाना था
हॅंसने,रोने की वजह ना कोई न कोई नाहक फ़साना था
हर रिश्ते में अपनापन था ना पराया ना कोई बेगाना था।

उम्र के इस पड़ाव पर आ कर यादें बचपन की रुलाती हैं
दादी वाली परीयों की कहानी शाम सुहानी याद आती हैं
सिरहाने से मुठभेड़ कर हसीं मुलाकातें आराम चुराती हैं
इक बार लौट फिर आओ ऐ बचपन यादें बहुत सताती हैं।
सर्वाधिकार सुरक्षित 
शैल सिंह 






सोमवार, 8 अप्रैल 2024

नव वर्ष मंगलमय हो

नव वर्ष मंगलमय हो 

प्रकृति ने रचाया अद्भुत श्रृंगार
बागों में बौर लिए टिकोरे का आकार,

खेत खलिहान सुनहरे परिधान किये धारण 
सेमल पुष्पों ने रंगोली रच धरा किया मनभावन 
मंद सुगन्धित हवाओं से वातावरण हुआ गुलजार 
नववर्ष, नवसंवत्सर का करना विशेष स्वागत सत्कार ।

प्रकृति है प्रसन्नचित्त प्रफुल्लित है बूटा-बूटा 
धरा-गगन चहुंओर नव पल्लव से सुगन्ध है फूटा
मन में उछाह उत्सुकता भरी प्रतिक्षा है शुभ होगा 
सूर्यवंशी रामलला का कोसलपुरी में सूर्यतिलक होगा ।

यह नवल वर्ष सनातनी गौरव का प्रतीक है
इसदिन सूर्य करेंगे राघव का अभिषेक वर्णित है
नवान्न फसलों से भंडार भर किसान आह्लादित हैं 
है सनातनियों का पर्व रामनवमी क्यों राम विवादित हैं ।

प्रकृति अपने पूर्ण यौवन पर झूम रही मानो
पुष्पों,पल्लवों फलों से वृक्ष आच्छादित हैं मानों 
नूतनं वर्ष चैत्र शुक्ल प्रतिपदा की चतुर्दिक जय हो
वैदिक सनातन नूतनवर्ष हर भारतीय को मंगलमय हो ।

पर्वों शुभ मुहूर्तों का मास चैत्र महिना आया
नव दुर्गे की उपासना का नव दिवस मन हर्षाया
द्वारे ध्वजा लगा स्वास्तिक बना रंगोली है सजाना
नवसंवत्सर के महत्व से अवगत इस पीढ़ी को कराना ।

सर्वाधिकार सुरक्षित 
शैल सिंह 

सोमवार, 25 मार्च 2024

कल की आरजू में आज को गंवाना नहीं अच्छा
ना जाने क्या हो कल ये तो कोई नहीं है जानता 
आज कभी लौटकर नहीं आता है आज में जीयें
कल न जाने क्या घट जाए कोई नहीं है जानता।
शैल सिंह 

होली पर कविता


होली पर कविता ----

हम उत्सवधर्मी देश के वासी सभी पर मस्ती छाई 
प्रकृति भी लेती अंगड़ाई होली आई री होली आई,

मन में फागुन का उत्कर्ष अद्भुत होली का त्योहार 
बूढ़वे हो जाते युवा, चहुंओर आशा प्रेम का संचार 
पक फसलें हैं तैयार चढ़ा ऋतुपति का मधु खुमार,
द्वारे-द्वारे पर अनुगूंज,चौपाल,उलारा,बैठकी धमार

बौर आ गई अमराईयों में कूहुकने लगीं कोयलियां
मादक बहने लगी बयार फूटे कंठ से स्वर लहरिया
कहीं बुज़ुर्ग जवान हो बांधें समां बैठे नगर दुवरिया
तान छेड़ें फाग के गांव जवार लिए मृदंग झंझरिया,

दिन बीतता मठरी गुझिया में रात पूआ पकवान में 
भांग,ठंडाई पीस-पीस बैठकी गायें कंहार दलान में 
हरि की होली बरसाना में शिव की होली मसान में 
इतने हर्षौल्लास का पर्व होली नहीं कहीं जहान में,

हाथ गुलाल किसी के कंचन भरी केसर पिचकारी
कहीं नव उल्लास से नंद देवर सुनें भावज से गारी
उर के तार हुए झंकृत पिया ने रंगों से गात संवारी
रसियों ने रंग ऐसा डारा कि वस्त्र हो गये गुलकारी।
सर्वाधिकार सुरक्षित
शैल सिंह 

बचपन कितना सलोना था

बचपन कितना सलोना था---                                           मीठी-मीठी यादें भूली बिसरी बातें पल स्वर्णिम सुहाना  नटखट भोलापन यारों से क...