फागुन और वसन्त --कपोल गुलाबी करवा गोरी और हुई छबीली
" कपोल गुलाबी करवा गोरी हुई और छबीली " मन के धुलें मलाल,अबीर गुलाल से प्यार में मुबारक सबको होली,भींगें रंगों के फुहार में । आया फाल्गुन का महीना बहे फगुनी बयार साँसों में घुला चंदन मौसम हो गया गुलज़ार दिल हुआ बावरा मिश्री घोले प्राणों में पूरवा मधुऋतु का उल्लास लगे खिली-खिली दुर्वा । कुसुमित हो गईं कलियां महक उठा उपवन रूनझुन बाजी पायल पाँवों में उठा थिरकन पत्रविहीन टहनियों पर फूटी फिर से कोंपल बरस वसंती वर्षा भींगा गई धरा का आँचल । हुरियारे हुड़दंग मचाकर पनघट चौपालों पर थिरकें गागा फगुआ,ढोल,मृदंग के थापों पर यौवन से गदराये वृक्ष,मंजर सुगंध बिखराया शोख़ हुईं कलियों पर भ्रमरा उन्मत्त मंडराया । कुंकुम,केसर सजा थाल,ऋतुराज पाहुन का पपीहे,कोयल करें चहक सत्कार फागुन का इन्द्रधनुषी हुआ अनन्त,छटा बिखरी रंगों की झूमकर आई होली,चूनर भींगो गई अंगों की । प्रकृति की छवि न्यारी साफ-स्वच्छ आकाश करें विहार विहंग व्योम में उर में भर उल्लास प्रकृति कर आबन्ध फागुन से,दी ढेरों सौगात सुर्ख रंगो में चरम पे यौवन टहकें टेसू पलाश । बौराया हर नटखट मन,मस्ती भरे त्यौह...