संदेश

दिसंबर 6, 2015 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

नाता तुड़ा दिया नईहर के सारे

अभी-अभी बेटी की शादी करके लौटी हूँ बेटी विदा करने का उद्वेलन क्या होता है बेटी वाला ही जान सकता है ,मैं भी अपने बाबूजी की बेटी थी ,अपने प्रियजनों से जुदा होते समय बेटी के मन में क्या आन्दोलन होता है ,वही हृदयस्पर्शी भाव मेरी कविता में व्यक्त है ,यह  हर बेटी की पीड़ा का असह्य व्याख्यान है । पिता ने लाड़ की नदी बहाई माँ ने ममता का सागर भैया के स्नेहिल बाँहों  की बड़ी हुई ओढ़कर चादर , परम्परा के निर्वहन में, मैं रीति की भेंट चढ़ा दी जाऊँगी कोई घोड़ी चढ़कर आएगा डोली में बिठा दी जाऊँगी , गाजे-बाजे साथ बाराती वर आया धूमधाम मेरे द्वारे चुटकी भर सिंदूर मांग भर नाता तुड़ा दिया नईहर के सारे, फूट-फूट रोई माँ मेरी पिता ने रुँधे गले दी ढाढ़स भैया विलख दिए कांधा सौंप दी अपनी पूँजी पारस , आँसुओं की छछनी बाढ़ भी जुदा करने से रोक नहीं पाई सर पे डाल ओहार चूनर की कर दी गई मेरी विदाई , जब से जनम लिया है सुनती आई पराई धन हूँ ये कैसी है विडम्बना ,मैं तुलसी और किसी आँगन हूँ , स्वयं लहू से सींचा माँ ने पिता ने धन दौलत था समझा भैया ने न...