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खेली लब पे तबस्सुम ज़माने बाद

खेली लब पे तबस्सुम ज़माने बाद  मौज़े इश्क़ में ये तोहफ़ा मिला ज़िंदगी  कि तन्हा हुए दिल लगाने के बाद  कारवां दिल का राहे वफ़ा में लुटा  होश आया मगर चोट खाने के बाद ।  खो गया शौक़ का सब सामां औ जुनून  क्या बचा दाग़ दामन लगाने के बाद  सुख के सांसों पर बरपा क़हर ज़िंदगी  ख़्वाब सुन्दर ज़ेहन में सजाने के बाद ।  ढल गया ख़ामशी में सुकूं औ ख़ुलूस  मेहरबानी भी जानी भरम खाने के बाद  ग़र उल्फ़त का आता सलीका उन्हें  बज़्म से उठ कर जाते ना आने के बाद ।  इश्क़ में इल्म होता ग़र हाल-ए -परेशां  दिल्ल्गी जान जाती लुत्फ़ उठाने के बाद  किस बुत ने किया है नाशाद इस तरह  पूछते हैं शैल ज़िन्दा जलाने के बाद ।  जीना,मरना भी मुश्किल था कब ये पता  ना पूछो क्या गुजरी आजमाने के बाद  बदनसीबी पे रोयें या गायें सनम    होली अरमानों की ख़ुद जलाने के बाद ।  कोई ऐसा नहीं ज़ख्म खाया ना हो  ये जाना दास्तां दिल सुनाने के बाद...