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जुलाई 27, 2014 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

नौमीद मत होना जहाँ आफ़री साथ तेरे

नौमीद मत होना जहाँ आफ़री साथ तेरे घबराकर तुम कभी ग़म-ए-हयात से जिंदगी बेबस दूभर ना खुद बना लेना हर भयावह रात बाद रंगेशफक़ सवेरा होगा, बात सोज़ दिल को समझा लेना , असंख्य गुलाबों की बाग़ है ये दुनिया  फूल चुनना शूलों से दामन बचा लेना  ये दुनिया है फर्श चिकना चौंधियाकर  फिसल ना जाना खुद को संभाल लेना , महरूमी-ए-किसमत पर हँसे जमाना  जुल्में-दुनिया से हाले दिल छुपा लेना ऐतबार,वफा ,खता आग के दरिया हैं  इरादों का अपने ना ख़्वाब जला लेना , मायूस हो मुश्किले-हालात से हरगिज़ न खुद को ग़म के आईने में ढाल लेना वक्त के ज़ालिम हाथ की कठपुतलियां हैं हम,किस्मत रंग लाएगी आज़मा लेना , यही इम्तिहान की कठिन घड़ी है दोस्त  आस्मां पर लक्ष्यों का अरमान उगा लेना  जिंदगी इक जंग है संघर्ष अनवरत सही  ठोकरों की नोंक पे अंगड़ाई जवान लेना , जो काबिल नहीं तेरे तरज़ीह भी ना देना इन दिल दुःखाने...

हम ऐसे फूल हैं ख़िज़ाँ में महकेंगे ख़ुश्बू सदा बनके ।

हम ऐसे फूल हैं ख़िज़ाँ में महकेंगे ख़ुश्बू सदा बनके    शाहकार बहुत दहर में ख़ुदा की इनायत सदा हमपे  हम ऐसे फूल हैं ख़िज़ाँ में महकेंगे ख़ुश्बू सदा बनके ।  मेरी ख़ुद्दारी पे बन आई खुदा खुद्दार बनाये रखना क़ुर्बान जाऊँ इसपे परवरदिगार लाज बचाये रखना , क़ाईल मौजे हवा से हूँ वो बदलते मौसम से हो गए  चेहरा-ए-अय्याम देखे कमाल बेदार इसी से हो गए , सई-ए-मुक़र्रर को सहने की अब ताब नहीं मुझमें  तज़कारा से क्या फायदा कोई अब चाव नहीं उनमें ,    उनकी फितरत है ऐसी खुदशनास भी होंगे खुद से  यही अज्ज होता है रस्मो-राह रखना रज़ील रुत से , कैसे सैय्याद हैं दहर में समय से जान लिया अच्छा  ऐसे सुकूत से ज़िंदगी को निजात मिल गया अच्छा , अवारगाने-शहर में वो रूप का ज़ेवर सजाये रक्खें   ग़लतफ़हमियों के आईने में ऐसे तेवर सजाए रक्खें , क़ाईल--संतुष्ट ,चेहरा-ए-अय्याम--लोगों के चेहरे  सई-ए-मुक़र्रर--किसी होनी के दुबारा घटने का...