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मार्च 24, 2024 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं
कल की आरजू में आज को गंवाना नहीं अच्छा ना जाने क्या हो कल ये तो कोई नहीं है जानता  आज कभी लौटकर नहीं आता है आज में जीयें कल न जाने क्या घट जाए कोई नहीं है जानता। शैल सिंह 

होली पर कविता

होली पर कविता ---- हम उत्सवधर्मी देश के वासी सभी पर मस्ती छाई  प्रकृति भी लेती अंगड़ाई होली आई री होली आई, मन में फागुन का उत्कर्ष अद्भुत होली का त्योहार  बूढ़वे हो जाते युवा, चहुंओर आशा प्रेम का संचार  पक फसलें हैं तैयार चढ़ा ऋतुपति का मधु खुमार, द्वारे-द्वारे पर अनुगूंज,चौपाल,उलारा,बैठकी धमार बौर आ गई अमराईयों में कूहुकने लगीं कोयलियां मादक बहने लगी बयार फूटे कंठ से स्वर लहरिया कहीं बुज़ुर्ग जवान हो बांधें समां बैठे नगर दुवरिया तान छेड़ें फाग के गांव जवार लिए मृदंग झंझरिया, दिन बीतता मठरी गुझिया में रात पूआ पकवान में  भांग,ठंडाई पीस-पीस बैठकी गायें कंहार दलान में  हरि की होली बरसाना में शिव की होली मसान में  इतने हर्षौल्लास का पर्व होली नहीं कहीं जहान में, हाथ गुलाल किसी के कंचन भरी केसर पिचकारी कहीं नव उल्लास से नंद देवर सुनें भावज से गारी उर के तार हुए झंकृत पिया ने रंगों से गात संवारी रसियों ने रंग ऐसा डारा कि वस्त्र हो गये गुलकारी। सर्वाधिकार सुरक्षित शैल सिंह