मन से मावस की कारी रात भगाएं
मन से मावस की कारी रात भगाएं आओ मिल जुलकर हम सब नेह का दीप जलाएं तम् के नीचे भरें तमस के आँचल उजियारा ,घर-घर पूनम का चाँद बुलाएं स्नेह में बोरें माटी का तन, मन से मावस की कारी रात भगाएं , दुःख दर्द गले मिल बांटें आओ, इक दूजे के गम शूल खींचकर सुपर्व मनाएं शुभ दीवाली, कण-कण प्रकाश की लौ बिखेरकर , हम करें बात तो लगे गीत सा, फुलझड़ियों के जैसे फूटे सितारे, रोमांच भरा हो मिलन हमारा ,लगे पटाखों की लड़ियों से नज़ारे , मिलें बंधुजनों के घर-घर जाकर, मतभेद मिटाकर देवें बधाईयाँ खुशियों की मन में लहर जगाएं खाएं खिल बताशे औ मिठाइयाँ , महान पर्व ये बरस-बरस का, कड़वाहट का आओ म्लेच्छ भगाएं स्नेह धार से नवकिरण बार हम एकता का जग-मग दीप जलाएं । ...