बुधवार, 27 मई 2020

अभी तक जिसपर किसी ने नहीं लिखा

अभी तक जिसपर किसी ने नहीं लिखा

किसी को ठेस पहुँचाने के लिए नहीं वरन
मंथन करने के लिए लिखा है ,लेखन के क्षेत्र
में रचनाकारों के भागमभाग पर एक वानगी
जिन लोगों ने रचनाओं का स्वरूप ही बिगाड़ 
दिया है,कितनी कोई प्रतिक्रिया देगा दौड़ती हुई 
रचनाओं पर...... 


प्रशंसा में छिपा झूठ कवि पहचानते नहीं 
आलोचना में सत्य छिपा तुम ताड़ते नहीं ,

यूँ रोज-रोज कविवर जो कविता लिखोगे
अनायास जबरदस्ती उसमें लफ़्ज़ ठूंसोगे
तुक,ताल, लज्जतें,ना कथ्य,प्रेरणा,सन्देश
बुन ज़ाल शब्द के बे-अर्थ भाव पिरोओगे ,

कविता,कलाम,रूबाई औ ग़ज़ल हर्फ़ से
मन होने लगा विरत है क्यों इस तरफ से
बिन सुस्ताये लिख शायद गर्दा उड़ाते हो
अनर्गल प्रलाप गढ़गढ़ कविता बनाते हो ,

न दर्द करूण रस में न श्रृंगार रस में दम
दो चार पाठकों की सराहना के पात्र बन
अप्रयोज्य सृजन पर तुम यूँ गुमान करोगे
रूप पद्य का बिगाड़ कर नाम कमाओगे ,

ऐसे कीर्ति की ललक क्यूँ जो दौड़ रहे हो
अल्फ़ाज़ काव्य में अरुचि के सौन रहे हो
कोफ़्त होने लगी है पठन विरक़्त सा लगे
सुस्ती छाने लगे पढ़ रूझान मौन सा लगे ,

शब्दों से लेखनी से कबतक खेला करोगे
चाहकर न पढ़ सकेंगे पृष्ठ जो ऐसा भरोगे 
प्रतिदिन हो लिखते जैसे हो स्पर्धा रेस की
ऊबन होने लगी बहुत,कृत जो ऐसा करोगे ,

बस प्यार,मोहब्बत के उल्लेख में लिप्त हो
वर्ण ढूंढ़ शब्दकोष से बकवास उड़ेलते हो
कुछ सबरकर ठहरकर लिखो सुपाच्य हेतु
क्यूँ कीर्ति हेतु थोक में कंजास परोसते हो ,

कल्पना के धरातल उगें जो भाव के अंकुर  
तो काव्य सृजित करो लक्षणा,व्यंजना युक्त
प्रभावहीन कवायदों से ना कविता उकेरिये
बिंब,प्रतीक,रूपकों की न शुचिता बिखेरिये ,

रचनाकारों की ज़्यादती ने मन उचटा दिया
मूर्ख़ बनाने वाले समीक्षाओं से उकता दिया
उबाऊ हो गईं रचनायें सच्ची होड़ के चलते
रचनात्मक अभिरूचियों से जी भटका दिया ।

सर्वाधिकार सुरक्षित
शैल सिंह

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