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अभी तक जिसपर किसी ने नहीं लिखा

अभी तक जिसपर किसी ने नहीं लिखा किसी को ठेस पहुँचाने के लिए नहीं वरन मंथन करने के लिए लिखा है ,लेखन के क्षेत्र में रचनाकारों के भागमभाग पर एक वानगी जिन लोगों ने रचनाओं का स्वरूप ही बिगाड़  दिया है,कितनी कोई प्रतिक्रिया देगा दौड़ती हुई  रचनाओं पर......  प्रशंसा में छिपा झूठ कवि पहचानते नहीं  आलोचना में सत्य छिपा तुम ताड़ते नहीं , यूँ रोज-रोज कविवर जो कविता लिखोगे अनायास जबरदस्ती उसमें लफ़्ज़ ठूंसोगे तुक,ताल, लज्जतें,ना कथ्य,प्रेरणा,सन्देश बुन ज़ाल शब्द के बे-अर्थ भाव पिरोओगे , कविता,कलाम,रूबाई औ ग़ज़ल हर्फ़ से मन होने लगा विरत है क्यों इस तरफ से बिन सुस्ताये लिख शायद गर्दा उड़ाते हो अनर्गल प्रलाप गढ़गढ़ कविता बनाते हो , न दर्द करूण रस में न श्रृंगार रस में दम दो चार पाठकों की सराहना के पात्र बन अप्रयोज्य सृजन पर तुम यूँ गुमान करोगे रूप पद्य का बिगाड़ कर नाम कमाओगे , ऐसे कीर्ति की ललक क्यूँ जो दौड़ रहे हो अल्फ़ाज़ काव्य में अरुचि के सौन रहे हो कोफ़्त होने लगी है पठन...