तेरी अलबेली काया
तेरे खंजन नयन नशीले मृदु अधरों के बोल रसीले
नागिन सी लट लहरे ललाट,तिलस्मी चितवन बोले ,
किस दिव्य लोक से आई कल्पना में ख़लल मचाने
मखमली भाव तरंगों पर मृदु मादक हाला बरसाने ,
जब से दृग ने देखी है अल्हड़ तेरी अलबेली काया
चेतन अवचेतन तक को विस्मित कर तूने भरमाया ,
मन-फटिक शिला तेरी प्रतिमा सुख देती संसार का
प्यासे चातक मन को अर्क मिला जो तेरे दीदार का ,
सुखी,ऊसर,बंजर बसुधा अंतर्मन की हो गयी उर्वर
जीवन के मरुमय तट उन्मत्त,उगने लगे हैं तरुवर ।
शैल सिंह
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