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'जीवन राग'

         जीवन राग  ना जाने किस बला की नज़र लग गई है  कि मस्ती भरा  आलम कहीं  खो गया है  किलकारियों को भी  ग्रहण लग  गया है आकर्षण  भी ना जाने कहाँ  सो  गया है।    जहाँ बेला,जूही,चम्पा सुवासती थी चमेली वही हो गई है मरुभूमि सी मन की हवेली  प्रेम राग रूठ गया अन्तर्मन के घोंसलों से   कंटीली कंछियाँ फूटीं हृदय के अंचलों से।  चिंताओं,तनावों की घेरि आई कारी बदरी प्रेम की धरा पर रेगिस्तान जैसी रेत पसरी  अरमान सूखा,सूख गयीं रसपगी भावनाएं   वक्त के परों पर उड़ विलीन होतीं करुनाएं।  जरुरत है जीवन में फिर से राग रंग भरना  उर की स्वच्छ वेदी पे विकार आहूत करना  आन्तरिक सफाई कर के पौधे संस्कार की  सुन्दर पुष्प खिल सकें रोपें सूखी संसार की। बड़े-बड़े मॉल, शहर, कालोनी चौड़ी सड़कें दब जाये ना मानवता इस मोह में सिमट के प्रगति की हूँ पक्षधर  विस्तारों का उद्देश्य भी  सीमित यन्त्र में न खो जाये ...