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अश्क़ों के इस समंदर से कोई उबार दे

अश्क़ों के इस समंदर से कोई उबार दे चंद रोज की मुलाकात यादों का अम्बार दे  घर बसा कर ज़ेहन में निशां हजार दे किस बात का मलाल चाक-चाक दिल किया  सीने में घुट रहा दम बता मन का गुबार दे , चतुरता से देके दस्तक अचानक से ग़ुम हुए   एहसान मंद कर दिया दिल का आज़ार दे ताउम्र सालेगा लूट सरमाया मुक़दस दिल का बदल लिया कैसे अन्दाज़ भरोसा बेज़ार दे , क्यूँ बेहिसाब तल्ख़ दिल,जरा वो दीदार दे कुछ कर सकूँ सवालात मन को क़रार दे  पाकीज़गी पर शक नहीं ग़म इस बात का  क्यूँ बनाया मुरीद हद तक हक़ बेकार दे , क्यूँ ऐसे किया गुफ़्तगू पहलूनशीं में शुमार दे   साझा किया क्यों राजे-दिल फ़रहत फुहार दे                                     बेरूख़ी से फेर लिया नज़र बिन संवाद के  हैरतजदां हूँ गुजरा मेरे कूचे से बिन ईख़बार दे ,            इतनी तो कर इनायत बता वफ़ादार दे  किया ईश्क़ में दीवाना क्यों इज़हार दे  दिल की धड़कने...