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यादों का झरोखा

 यादों का झरोखा  शामे ग़म करार हो,बहल जाये ज़िंदगी  संवर जाये सफ़र तनहा  चहक जाईये , पीर पागल बनाये सताए बहुत याद  बन के झोंका हवा का गमक जाइये  कितनी मायूस है ज़िन्दगी आप बिन  बन के जुगनू गली  में चमक  जाइये , इक तमन्ना है दीदार की बस सनम  नूर आँखों का बन के झलक जाइये  इक  बोसा  राहत का दिल को मिले  रस मिले होंठ को बस छलक जाइये , भोर के स्वप्न जैसा देखे मंज़र नयन  ख़्वाब  की बांह में आ चहक जाइये  मन की सूनी हवेली है, अरसा हुआ  मुस्कुरा उठे गुलिस्ताँ महक़  जाइये , ग़ैर महफ़िलों की रौनक बढ़ाते रहे  बज़्म आकर मेरे भी  बहक जाइये  ग़मे बीमार की सुन शाम-ए-ग़ज़ल  चन्द लमहा ही सही ठमक जाइये , दर्द के हाथों बेच ख़ुशी तड़पी बहुत  घटा बनके पलक पर अटक जाइये  आज गुजरे ज़माने का वास्ता कसम  बेताब बांहों का दायरा भटक जाइये , दर्दे ग़म लेते अंगड़ाई करवट बदल बेज़ार पहलू लरजकर सहक जाईय...