गुरुवार, 12 दिसंबर 2013

मैं मेरी तन्हाई

मैं मेरी तन्हाई 


मन के आंगन बहती रहती
यादों की पुरवाई
इसीलिए भाई मुझको मैं मेरी तन्हाई ।
कुछ अतीत का कोना
कुछ कल का ताना-बाना
आज में जीती सुख से
अपनी धुन का गा के गाना ।
जोड़ों सी मीठी टीस उठे
कुछ दर्द भी ले अंगड़ाई
लगे सुहानी रहस्यमयी
दिन सी रात हुई अमराई ,
इसीलिए भाई मुझको मैं मेरी तन्हाई ।
भूल सकी ना जिसे कभी
अपना होना साबित करतीं
व्यर्थ की कितनी चीजें भी
मन को परिभाषित करतीं ।
बीते कल की भग्न प्राचीरें
वो आँखों में भर लाई 
नीम बेहोशी सी खुश्बू में
कितनी रातें जाग बिताई
इसीलिए भाई मुझको मैं मेरी तन्हाई ।
                                             
                                         शैल सिंह 


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