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मैं मेरी तन्हाई

मैं मेरी तन्हाई  मन के आंगन बहती रहती यादों की पुरवाई इसीलिए भाई मुझको मैं मेरी तन्हाई । कुछ अतीत का कोना कुछ कल का ताना-बाना आज में जीती सुख से अपनी धुन का गा के गाना । जोड़ों सी मीठी टीस उठे कुछ दर्द भी ले अंगड़ाई लगे सुहानी रहस्यमयी दिन सी रात हुई अमराई , इसीलिए भाई मुझको मैं मेरी तन्हाई । भूल सकी ना जिसे कभी अपना होना साबित करतीं व्यर्थ की कितनी चीजें भी मन को परिभाषित करतीं । बीते कल की भग्न प्राचीरें वो आँखों में भर लाई  नीम बेहोशी सी खुश्बू में कितनी रातें जाग बिताई इसीलिए भाई मुझको मैं मेरी तन्हाई ।                                                                                        शैल सिंह