शुक्रवार, 14 दिसंबर 2012

गूंज उठता है इक दर्द भरा गीत सुनी वादियों में
जब हर सुबह हर शाम की ख़ामोशी में ढलती है,
उभर उठता है ख्यालों में भी इक मासूम चेहरा
जब सिसक कर दर्द जवां हो करवट बदलती है,
मचल उठता है होठों पे चिर-परिचित सा नाम
दरक कर जब जिंदगी लब से आह निकलती है ।



गुरुवार, 13 दिसंबर 2012

संजीवनी

        संजीवनी

आज हृदय के द्वार पर हलचल
मैंने नीर भरी आँखों से देखा
पथ पर जाते एक बटोही को
था जो प्रियतम के रूप सरीखा ।

सिमट गया आँचल में आकर
पानी मान सरोवर का फीका
देखो प्रणय के मुझ जैसे मतवाले
मोती सी झर-झर गंगाजल का ।

डाली पर इतराती कलियाँ जो
रवि की किरणों में खिलती हैं
दुःख दर्द किसी के जीवन का
वो मुस्काती अधरों से कहती हैं ।

सुमनों के प्रेमी हे भ्रमरा तुम
उनक अंतर भावों को पढ़ लेना
जो मूक कहानी कहती हों उनके
प्रियतम से दूर देश में कह  देना ।

शब्दों में बिखराकर अन्तर गाथा
शिलाओं की सतह पर लिखती हूँ
पथ जाने वालों बतलाना उनको
सपनीले विश्राम गेह को चलती हूँ ।

निर्भय मृत्यु की मुझ पर महिमा
उसके तुमुल गर्जन से डरती हूँ
पर सांसों के विश्रृंखल पल में भी
मौत को संजीवनी दिया करती हूँ ।
 


नव वर्ष मंगलमय हो

नव वर्ष मंगलमय हो  प्रकृति ने रचाया अद्भुत श्रृंगार बागों में बौर लिए टिकोरे का आकार, खेत खलिहान सुनहरे परिधान किये धारण  सेमल पुष्पों ने रं...