" पी ज़हर का प्याला भी ये दर्द मरता नहीं "
" पी ज़हर का प्याला भी ये दर्द मरता नहीं " मृदुल अहसासों का असंख्य उपहार दे ग़म,दर्द, ख़ुशी प्यार का अनन्य संसार दे प्रीति की ज्योति आँखों में जलाकर गये चैन दिन का नींद रातों की चुराकर गये । मधुर बोलों से कर के गुञ्जार श्रवणेंद्रियाँ अपने आधीन कर श्वांसें,धड़कनें,इन्द्रियाँ छू गात अनुराग से चित्त गुदगुदाकर गये मंजु कलिका उर में प्रेम की उगाकर गये । दिल,ज़िगर,क़रार सब अपने संग ले गये शूल इंतज़ार के एवज में वे बेअंत दे गये रंगीन ख़्यालों के भंवर में उलझाकर गए तृषित नयनों में भोली छवि बसाकर गए । शरीर मेरा है मगर जीव मुझमें मेरा नहीं उनके रंग में घुल बह रही अधीर मैं कहीं ले परिधि में बांहों के ज़न्नत दिखाकर गए अनुराग का आसव नैनों से पिलाकर गए । लगे सरसराहट हवा की मुझे आहट तेरी राह भूले गली का भला किस बाबत मेरी क्यों झूठे वादों का दिलासा दिलाकर गए सितारे आसमानी दिवा में दिखाकर गए । चाँद,तारे क्षितिज ...