शुक्रवार, 19 नवंबर 2021

"मिले आँखों को सुकूं चले आओ तुम

अविचल द्वारपाल बन खड़ी द्वार पर
दो पुतलियाँ बावरी तक रहीं राह पर
काटे कटता नहीं लमहा इन्तज़ार का
कितनी शामें गुज़र गयीं दहलीज़ पर ।

लौट आने की शर्त पर जहाँ छोड़कर
तुम गये थे खड़े हैं हम उसी मोड़ पर
कैसे भूले मिलन का प्रथम तुम प्रहर 
प्रणय पल में दिए जो वचन तोड़ कर ।

धड़कनें भी तो नादान धड़कें यादों में
इस क़दर समा गये शिराओं सांसों में
मिले हृदय को सुकून चले आओ तुम
घटा सावन सी घुमड़े सदैव आँखों में ।

पथ आते-जाते हैं कितने बटोही मगर
बेख़्याल तुम हो गये या निर्मोही डगर
जागी हर रात श्वेताभ चाँदनी संग मेरे
नभ के तारों से पूछलो न मानो अगर ।

उन्नीदे नयनों में बीति रातों के वृतान्त
पढ़ लेना काटे जो वक्त तन्हा नितान्त
ग़र आ ना सको दो निज घर का पता 
सब्र होता नहीं उर है कितना अशान्त ।

सैलाब बन प्रीत का बहूं जीवन में तेरे
फिरूं नींद का ख़्वाब बन नैनन में तेरे
मन के पतझड़ में तेरे अभिलाषा मेरी 
झूमूं शादाब सा पुष्प बन चमन में तेरे ।

शादाब--हरा-भरा
सरवाधिकार सुरक्षित
 शैल सिंह

रविवार, 14 नवंबर 2021

शहीद की पत्नी का विलाप

लौट कर आने की बात कहकर गये
चाँदनी की रश्मि से भोर होने तलक
पथ निहारा की सारा दिन सारी रात 
आँखें पथरा गईं राहें देखते अपलक ।

हुआ इंतज़ार ख़त्म वे आए तो मगर
तन पर डाल तिरंगा शान से द्वार पर 
जिनके इंतज़ार में दिनरात की बसर
मनहूस सहर लाई  जाने कैसी ख़बर ।

अमर रहे,क्रंदन,ज़िन्दाबाद का नारा
पुष्पवर्षा,शोक धुन,रोदन हाहाकारा
जन समूह का इकट्ठा हुजूम देखकर  
थम गईं धड़कनें दृष्टि देखे जो मंजर ।

कर्तव्य के अनुरागी वे वतन के लिए 
शहादत का ये गौरव वरण कर लिए 
जिनके आस में जलाई दृगों के दीये
सात फेरों के वचन तोड़ वे चल दिये ।

कर्ज माटी का चुका वे फर्ज निभाए
श्वेतवस्त्र नजर कर मेरा अंग सजाए
करवा चौथ तीज व्रत का अंत कैसा
उम्र भर के विरह का दिया दंश ऐसा ।

झट बिंदिया सिंदुर मेरी पोंछ दी गई
तोड़ मंगलसूत्र चूड़ी भी कूंच दी गई
वैधव्य के पोशाक में शक्ल देखकर 
बहने लगे सब्र तोड़ आँख से समंदर ।

विछोह सहने की क्षमता लाऊँ कैसे
जो दरक रहा भीतर समझाऊं कैसे
वर्दी की लाज रखे वो अमर हो गये 
हमारी दुनिया लुट गई बेघर हो गये ।

सहर—सुबह , नजर---तोहफ़ा 
सर्वाधिकार सुरक्षित 
शैल सिंह 

नव वर्ष मंगलमय हो

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