नई स्फूर्ति की मिश्री घोल रही है
'' नई स्फूर्ति की मिश्री घोल रही है '' सोने वालों उठो नींद से आँखें खोलो आलस्य उबासी छोड़ो मुँह तो धो लो , अँधेरे की तिजोरी अलकें खोलीं देखो सप्तरंगों की खींच रंगोली अम्बर ने बिखरा दी रोली खेत चले किसान ले बैलों की टोली बूढ़ी अम्मा मक्ख़न बिलोल रही है , धरा पे बिखरी सूरज की लाली मन आभा मण्डल से हुआ विभोर गहमा-गहमी हुई प्रारम्भ प्रात की गह-गह फैली कृत्रिम छटा चहुँओर हरियर दूब पर ओस ठिठोल रही है , हिम शिखर की चोटी चूम-चूम स्वर्णिम ऊषा पट खोल रही है प्रात की पहली रुपहली किरण सिन्दूरी घूँघट के ओट से बोल रही है नई स्फूर्ति की मिश्री घोल रही है मंगल गीत सुना रहे हैं सुर में दहियल,बुलबुल,कोयल,कलहांस गुलमुहर पर छितरी लाली पीली ओढ़नी ओढ़े अमलतास चिड़ियाँ चह-चह किल्लोल रही हैं , दिन चढ़ आया रवि लाया देखो नव जोश उजास की भरी टोकरी तिमिर चीर फूट रहा उजाला पुरईनियां खिल गईं ताल,पोखरी पुरवईया झूर-झूर डोल रही है , दिन की सारी ...