याद पर कविता " महका जातीं सांसों को अनुराग से "
" महका जातीं सांसों को अनुराग से " जब-जब दूधिया किरण छितराई बजी सुधियों वाली मृदुल शहनाई टंगी तस्वीर देख मन की भीत पर सीने में हूक उठी आँख डबडबाई , जो ख़ुश्बू समाई अबतक सांसों में रोक लूँ सांसें लेना ये सम्भव नहीं पृथक कर दिए उसूलों ने राहेें मगर दिन बिन याद गुजरे ये सम्भव नहीं , यादें प्राय: बिखेरतीं इन्द्रधनुषी रंग आ पलकों की चौखट अन्दाज़ से नेेह से चूम अंतस् के अहसास को महका जातीं सांसों को अनुराग से , रखीं अनमोल ख़तों की निशानियां जिन शब्दों में बसी सुगंध प्यार की उम्र भर रखा चस्पा कलेजे से उन्हें थकीं आँखें न कम्बख़्त इंतज़ार की , हर डगर पर करतीं यादें परिक्रमा पग-पग चलें साथ परछाईं की तरह स्तम्भ सम खड़ी स्मृति आत्मा में वो जो दमकतीं सूर्ख अरुनाई की तरह । सर्वाधिकार सुरक्षित शैल सिंह