शुद्ध भाव कुम्हलाने लगे क्यों
शुद्ध भाव शुचिता से
सींच ले रे मन मानव ,उत्कृष्टता भरी कूट-कूट कर
अन्तर्जगत के भाव हैं इसमें ,
सादा जीवन उच्च विचार रख
सम्पन्नता की खान है इसमें
अवमूल्यन कर क्षरण कर रहे हो
क्यों भाव जगत को शुष्क बनाकर
भौतिकता,सम्पन्नता श्रेठ हो गई
आज़ उच्चता विचारों की छोड़कर ,
शुद्ध भाव कुम्हलाने लगे क्यों
देख बाह्य जगत की चमक-दमक
प्रेम,दया,परोपकार,सहिषुणता पर
हावी हो गई सम्पन्नता की धमक ,
हर गाँव,नगर,घर,गली,मोहल्ला
सभी ग्रसित हैं इससे सर से पांव
इस दौड़ में शामिल होकर सब ही
भूल गए हैं अन्दर झांकने के ठाँव ।
शैल सिंह
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