गुरुवार, 28 अप्रैल 2022

गर्मी पर कविता

               गर्मी पर कविता


जलता रहता दिन भर सूरज तपती रहती है धरती
दिन तो कट जाता किसी तरह पर रात नहीं है कटती
टप-टप चूता सर से पांव पसीना गर्मी ऐसी कहर बरपती
चाहे जितनी करूं सिफारिश किसी दिन बदरी नहीं बरसती,

ताप सहन करना मुश्किल झुलस रहे हैं पेड़ पालो
तन को मिले तनिक न चैन चाहे जितनी बार नहा लो
शुष्क सा हरदम रहे हलक जल चाहे ठंडा कण्ठ में डालो
तर करती नहीं लस्सी भी,आइसक्रीम कुल्फी जो भी खा लो,

जल दिखता नहीं तलहटी में वीरान पड़े हैं पनघट
सूना-सूना गांव,दिखे ना पीपल छाँव तले की जमघट
खग,पक्षी,ढोर,मवेशी प्यासे सूखे ताल,नदी,पोखर के तट
बहे ना पुरवा,पछुवा बैरन सबके बंद झरोखे,किवाड़ों के पट,

एसी,कूलर,पंखा रहम करें क्या बिजली रहती गुल 
मौज मनाने को होती छुट्टियाँ गर्मी खा गई मस्ती चूल
बाहर जाने की पाबन्दी लू के थपेड़े भक-भक उड़ती धूल
बंद पड़े हैं घर में कैदी के जैसे चिलचिलाती धूप लगती शूल,

चूल--चंचलता
  सर्वाधिकार सुरक्षित 
                  शैल सिंह 

बचपन कितना सलोना था

बचपन कितना सलोना था---                                           मीठी-मीठी यादें भूली बिसरी बातें पल स्वर्णिम सुहाना  नटखट भोलापन यारों से क...