अव्यक्त हृदय के आँसू
जब बड़ों में ही नहीं कोई बड़प्पन
तो क्या सीखेगा रेशम सा बचपन ।किसी ने संयम का तटबंध है तोड़ा
और हृदय विदीर्ण किया है आज,
मन छलनी कर ज्वाला भड़काई है
खण्ड-खण्ड करके रिश्तों का साज़ ।
ग़र दे नहीं सकता कोई किसी को
दो मीठे बोलों की अमृत का बूंद
हँसकर कटाक्ष कर कस फब्तियाँ
ना और भी बनाये सम्बन्धों को ठूँठ ।
हँसकर कटाक्ष कर कस फब्तियाँ
ना और भी बनाये सम्बन्धों को ठूँठ ।
कहीं ख़ाक न कर दे अहंकार यह
डर है अहंकारी का समूल विनाश
कुछ सीख ले प्रकृति सौरभ से जो
हरदम महकाती प्रतिकूल सुवास ।
कुछ अर्ध विक्षिप्त से अपने लोग हैं
सभी को नीचा दिखलाया करते हैं
नसीहत उसी सुनाने वाले को खुद
क्यों नहीं सुनने का माद्दा रखते हैं ।
सहने सुनने की भी इक सीमा होती
जब हिम्मत की औक़ात बताने की
क्यों तिलमिला कर आग बबूला हुए
बहरूपिये हैं रंग बदलना आदत सी ।
अपने कुत्सित भावों का परिचय देते
सदा सभी पर गरल उँड़ेलते हरदम
वह बहुरंगी अभिनय के वैभवशाली
सीख लें जहाँ पियूष बरसते हरदम ।
क्यों आदर्श पुरुष बन जग सम्मुख
महान साबित करते खुद से खुद को
मानवता विहीन,संवेदन हीन पता है
बहुत ख़ुश होते आहत करके सबको ।
कोई नहीं किया प्रतिवाद तो खुद को
सर्वोपरि मान करते सबका अपमान
ऐसे अभिमानी को यह बतलाना होगा
कौन दबा है पाँव तले जो देगा सम्मान ।
अव्यक्त हृदय के आँसू बहे काव्य में
कवि ने पन्नों पर विफर व्यथा दर्शायी
द्रवित भावों के क़तरों ने शब्द तराशा
मूक लेखनी ने असीम शांति बरसायी । |
शैल सिंह
बहुत सुन्दर कहन
जवाब देंहटाएंshabdon ko hathiyar banakar abhivakti darshati hun,
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