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कितने मौका परस्त तुम

कितने मौका परस्त तुम कदम-कदम पे भरोसे को आघात मिला  वफ़ा को मेरी बेवफ़ाई का सौग़ात मिला , मेरी शाइस्तगी का बेजां इस्तेमाल हुआ   ख़ाकसार होना क्या गुनाह बदहाल हुआ , शिद्दत से ऐतबार करना ही ज़ुर्म था मेरा पुरदर्द,पुरसोज से सम्मान ग़र्क़ हुआ मेरा , ऐसी बशारत दे बिस्मिल किया क्यों दोस्त  वाक़िफ़ बरगस्तगी से बुरहान मत दे दोस्त , इस बदअहदी का ख़ुदा ही जवाब दे अच्छा  तेरी बदनीयत पर रग़म रहना मेरा अच्छा , अर्से की भली दोस्ती का मख़ौल खुद उड़ाया बाज़ीच मेरा दिल क्या तोड़ जश्न जो मनाया , क्या कहेगी दुनिया ऐ खुदगर्ज़ ये भी ना जाना  हम भी होंगे ख़ुश इक़बाल आकर देख जाना , ख़यानत तुझे मुबारक़ मेरी सादगी ही देखी  कितने मौका परस्त तुम ये वानगी भी देखी ।  शाइस्तगी--शिष्टता,सभ्यता                 ख़ाकसार--विनीत,विनम्र               बुरहान--युक्ति ,सफाई  पुरदर्द--दर्द से भरा हु...