धरा को मौसम की सौगात तो दो
धरा को मौसम की सौगात तो दो टकटकी लगाये देखें आँखें बस अम्बर की ओर कड़क तड़क कर ललचाये काली घटा घेरी घनघोर , ख़फा-ख़फा क्यों बरखा रानी कर दो ना थोड़ी मेहरबानी लेकर उधार कजरारे बादल से नियत समय बरसा दो पानी , कृषक बेहाल हैं सुखी धरती खेत कियारी पड़े हैं परती दिखे ना कहीं हरी दूब औ चारा भेड़ बकरियां गायें क्या चरतीं , घर में नहीं अन्न का एक भी दाना ठाला पड़ा है कोठार का कोना रहम करो ओ बादल राजा लगा लो गुदड़ी का अन्दाजा , घर जला नहीं है कबसे चूल्हा फटका नहीं है राशन कबसे कूला सुखा कंठ हैं क्षुधा है भूखी काट रहे दिन खाकर रूखी-सूखी , सूरज बहुत हो गई तेरी वाली तपन से झुलसी देह की बाली कृपा कर सूनो मानवता का शोर कब होगी धुँधलाई आँखों में भोर , क्यों कंजूस बने हो मेघराज जी धरा को मौसम की सौगात तो दो बोवनी का समय खिसक ना जाए गायें सभी मल्हार बरसात तो दो , आमंत्रण स्वीकार करो आह्लाद से छोड़ बेरुख...