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नवंबर 9, 2014 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं
मन के शोर हैं या हक़ीक़त नहीं जानती ये बंद हैं या शेरो शायरी मैं नहीं जानती मन के शोर हैं या हक़ीक़त नहीं जानती । ( १ ) रुत बदलती है,मौसम बदलते हैं रोज, दिन महीने और साल गुजरते हैं रोज बस बदलती नहीं है घड़ी इंतज़ार की, जाने कितनी गली से गुजरते हैं रोज । ( २ ) ग़मों का अम्बार इतना ज्यादा है पास  गैरों के ग़म सहलाने की फुरसत नहीं गैरों की ख़ुशी से सरोकार मुझको नहीं ख़ुशी मेरे दर का रुख़ जब करती नहीं । ( ३ ) सितम ढाए हैं बहुत से सितमगर मगर ज़ख़्म खा-खाकर दिल पर संभलते रहे ग़मों में शामिल हुए नए ग़म हजारों मगर अज़ाब शानों पे रख रेगज़ारों पे चलते रहे । ( ४ ) हवाओं का दरीचे से बेरुख़ी से मुड़ के जाना आवारा सडकों पर सोचों की प्रायः टहलना दिल का परदा हिलाना गवारा भी ना समझा दरे-जाना से लौटकर हरीमे-ग़म में भटकना । अज़ाब -मुसीबतें । शानों--कांधा । रेगज़ारों--रेगिस्तान दरे-जाना- प्रिय के द्वार । हरीमे-ग़म--दुःखों के सहन में ।                 ...

मन के उद्गार

मैं अपने मन की कुछ बात कहना चाहती हूँ बुद्धिजीवी लोगों से ,क्योंकि मैं भी अपनी बेटी के रिश्ते के लिए आजकल इन चोंचलों से अज़ीज आ रही हूँ ,कब लगाम लगेगी इन कुंडली के चक्करों की जोड़-तोड़ को ,ज्योतिषियों की भ्रामक प्रचारों को जिसका जहर टी. वी.पर हर चैनल पर प्रसारित किया जा रहा है इंटरनेट पर पंडितों की साइटों की भरमार है ,जिसे देख सुनकर जनता अंधविश्वासों की शिकार होती जा रही है ,मांगलिक और गुणदोष के चक्कर में लडके-लड़कियों की शादी की सही उमर ही निकलती जा रही है यदि पोथी,पत्रों वाली बातें इतनी ही सच होतीं तो हमारी पीढ़ी के लोग कितने परेशान हुए होते ,पहले हर दम्पति के चार,पांच ,छह ,आठ औलादें होती थीं इतने शिक्षित भी लोग नहीं होते थे कि अपने इतने संतानों की सही डेट ऑफ बर्थ का सही-सही लेखा-जोखा संरक्षित कर रख सकें । टी.वी. पर दिखाए जा रहे वास्तु शाश्त्र कुंडली के दोष गुण के उपाय अच्छे-अच्छों के दिमाग़ का गुड़गोबर कर दिया है ,पहले भी लोग मानते थे पर आजकल की तरह नहीं ,कितनों की दुकानें चल निकली हैं ,शादी व्याह की कित...

मत हमसे हमारी उमर पूछिये

मत हमसे हमारी उमर पूछिये  उमंगें-तरंगे जवां धड़कने हैं अभी अभी अंगड़ाईयाँ लेतीं हिलोरें घनी मत हमसे हमारी उमर पूछिये धुँधला जाये जिसे देख जौहरे-आईना अभी भी बसद रंग हृदय के आबाद हैं कल्पनाओं का व्यापर करती नहीं मैं महफ़िलों में अभी भी नूर की धाक है मन के सितारों का चमकता गगन देखिये मत हमसे हमारी उमर पूछिये । रंग और रेशा शरीर के हैं जर्जर मगर उजले केशों में शक्ति की वही धार है वहशत वही आज़ भी मेरे हर लम्स में जीस्त वही आज भी अज्जाए-बहार है ढली साँझ,चांदनी का खुशरंग जुनूँ देखिये मत हमसे हमारी उमर पूछिये । सदा वंचित रखा खुद को जिस बात से क़ायम रिश्ता था भींगती सांवली रात से बेमक़सद गंवाई जिंदगी जो मैनें दहर में  अभागिन इच्छाएं जागी अब हो मुखर हैं  मौज़-ए-खूँ देखिये बस रंगे-तरब देखिये मत हमसे हमारी उमर पूछिये । मलय-मारुत लजाएँ गति वही आज भी इन हाथों भुजाओं में है बल वही आज भी धुंधला गई रौशनी जर्जर मलिन गात है ज़िन्दा हासिल-ओ-लाहासील ज़ज्बात हैं नंगे-पीरी शर्मा जाये नैरंगे-नज़र...