नई बहू का आगमन
छोड़ी दहलीज़ बाबुल का आई घर मेरे
बिठा पलकों पर रखूँगी तुझे अरमां मेरे ।
बिठा पलकों पर रखूँगी तुझे अरमां मेरे ।
तुम्हारा अभिनंदन घर के इस चौबारे में
फूल बन कर महकना भवन ओसारे में
आँगन उजियारा हो चाँदनी जैसा तुमसे
फूल बन कर महकना भवन ओसारे में
आँगन उजियारा हो चाँदनी जैसा तुमसे
पंछियों सा चहकना घर कानन हो जैसे ।
लो ये चाभी के गुच्छे संवारो घर अपना
बस ये ही गुजारिश सबका मान रखना
नया परिवार,परिवेश नया घर यह सही
नया परिवार,परिवेश नया घर यह सही
रखना सामंजस्य यहाँ कुछ पराया नहीं ।
सबसे सौभाग्यशाली समझना खुद को
तुम भी मूल्यमान हो है जताना मुझको
पुत्रवधू कह पुकारूं तुुझे अन्याय होगा
तुम भी मूल्यमान हो है जताना मुझको
पुत्रवधू कह पुकारूं तुुझे अन्याय होगा
जोडूं माँ-बेटी सा रिश्ता तो साम्य होगा ।
न कोई बंधन यहाँ न कुछ थोपना तुझपे
करना इज्ज़त सबका बस कहना तुझसे
पल्लवित,पुष्पित हो चहचहाना तूं आँगने
करना इज्ज़त सबका बस कहना तुझसे
पल्लवित,पुष्पित हो चहचहाना तूं आँगने
ताकि बाँट सकूं सुख-दुःख मैं तेरे सामने ।
अक़्स देखना तुम मुझमें अपनी मातु का
दूंगी खुशियां दुगुनी आँचल की छांंव का
कुछ सिखलाऊं,समझाऊं दूं मैं नसीहतें
खुशी से स्वीकारना अनुभव की ये नेमतें ।
शताब्दी से प्रचलित नकारात्मक चर्चों पर
डालें नया आवरण सास-बहू के रिश्तों पर
ससुराल,पीहर में हो ना फ़र्क़ महसूस तुझे
वात्सल्य के सानिध्य से हो तूं अभिभूत ऐसे ।
हो दुविधा,आशंका कभी संशय या रूसवा
सुलझाना आत्मियता से सब गिला,शिकवा
इक दूजे से आहत ना हों ऐसा सम्बन्ध रखें
सौहार्द्र परस्पर मेें हो आत्मीय अनुबंध रखें ।
शैल सिंह