दहशत में है गाँव
जबसे खाद्यान्न का देश में बढ़ा उत्पाद
नरभक्षी भेड़ियों सा भयानक हो गया इंसान
डर है भूख क्षुधा की कहीं और ना बढ़ जाये
आदमखोर आदमी और भी हो जाये हैवान ,
वह युग नहीं देखा इस पीढ़ी ने जिसमें लोग
एक-एक दाने के लिए थे असहाय मोहताज़
सतुआ,भुट्टा,ककड़ी,खा कभी चबैना रस पी
मेल-भाव से ख़ुश रहते साथ,उम्दा था अंदाज़ ,
मुँह का कौर निवाला रख कठिन जतन से
ख़ुद रुखा-सूखा रह बच्चों का भरते थे पेट
हँसी-ख़ुशी से दिन बीतते बैर-भाव ना द्वेष
आज सक्षम होकर भी सब कुछ मटियामेट ,
पिचके गालों पपड़ियाए होंठों पर भी तब तो
गुरबत में भी खिला करती थी हँसी मुस्कान
पिचके गालों पपड़ियाए होंठों पर भी तब तो
गुरबत में भी खिला करती थी हँसी मुस्कान
मिल बैठ के दुःख सुख सब साझा कर लेते थे
सजती थी दोनों जून ठिठोली की हॉट दूकान ,
निर्भीक,निडर सोया करते थे खुली हवा में
लोग,बाग़-बग़ीचे,ट्यूबवेल पर नीम की छाँव
बिजली,बत्ती ना घर पंखा,डर से कैसे आज़
सजती थी दोनों जून ठिठोली की हॉट दूकान ,
निर्भीक,निडर सोया करते थे खुली हवा में
लोग,बाग़-बग़ीचे,ट्यूबवेल पर नीम की छाँव
बिजली,बत्ती ना घर पंखा,डर से कैसे आज़
कोठरी भीतर दुबके रहते दहशत में है गाँव ,
कैसा युग आया अपनों से भी लगने लगा है डर
सीमा पर दुश्मन के छल-कपट-छद्म का गढ़
मौत का स्वयम्बर रचा करते दुष्ट पड़ोसी देश
आतंकी उत्पात अनर्थ अत्याचार सभी की जड़
शैल सिंह ।
कैसा युग आया अपनों से भी लगने लगा है डर
सीमा पर दुश्मन के छल-कपट-छद्म का गढ़
मौत का स्वयम्बर रचा करते दुष्ट पड़ोसी देश
आतंकी उत्पात अनर्थ अत्याचार सभी की जड़
शैल सिंह ।