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अगस्त 31, 2014 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

दहशत में है गाँव

 दहशत में है गाँव जबसे खाद्यान्न का देश में बढ़ा उत्पाद नरभक्षी भेड़ियों सा भयानक हो गया इंसान  डर है भूख क्षुधा की कहीं और ना बढ़ जाये  आदमखोर आदमी और भी हो जाये हैवान , वह युग नहीं देखा इस पीढ़ी ने जिसमें लोग    एक-एक दाने के लिए थे असहाय मोहताज़  सतुआ,भुट्टा,ककड़ी,खा कभी चबैना रस पी  मेल-भाव से ख़ुश रहते साथ,उम्दा था अंदाज़ , मुँह का कौर निवाला रख कठिन जतन से  ख़ुद रुखा-सूखा रह बच्चों का भरते थे पेट  हँसी-ख़ुशी से दिन बीतते बैर-भाव ना द्वेष  आज सक्षम होकर भी सब कुछ मटियामेट , पिचके गालों पपड़ियाए होंठों पर भी तब तो गुरबत में भी खिला करती थी हँसी मुस्कान  मिल बैठ के दुःख सुख सब साझा कर लेते थे सजती थी दोनों जून ठिठोली की हॉट दूकान , निर्भीक,निडर सोया करते थे खुली हवा में लोग,बाग़-बग़ीचे,ट्यूबवेल पर नीम की छाँव बिजली,बत्ती ना घर पंखा,डर से कैसे आज़ कोठरी भीतर दुबके रहते दहशत मे...

कथन मोदी जी का

कथन मोदी जी का  मैं एक आम आदमी हूँ मुझे आम ही रहने दो  जो मुझमें खास है वही ख़ास  मुझमें वही ख़ास रहने दो, छू लूँ बुलंदी रहे पांव मगर  जमीं की हरी भरी घास पर  ईमानदार,साखदार बनूं  रहे आँख समग्र विकास पर, देश सेवा,जन सेवा में रत रहूँ सरलता हो संग मेरे हो दूजी  सहनशीलता रहे मेरा आभूषण  ताज़िन्दगी इमान रहे मेरी पूँजी, चाय बेचना ग़र गुनाह है  तो ये गुनाह बार-बार करूँगा  मिले मरने के बाद जन्म अगर  चाय वाला ही कलाकार बनूँगा, चाय ने तो इस ग़रीब को दिया    जमीं से उठा अर्श पर मुक़ाम  कमाल छोटे से पायदान का   दिया ईनाम में शोहरत,हस्ती नाम ।                                            शैल सिंह 

इक वक्त था जब

मुर्गे की बाँग से प्रारम्भ विहान होता पक्षियों के कलरवों से सूर्योदय का भान होता अब नहीं चहकतीं बुलबुलें भी वैसी बाग़ में मोर-मोरनी के नहीं वैसी रोमांच नाच में कोयल भी मीठी कूक नहीं अब सुनाती रात में अब नहीं वो बात जो पहले बात थी बरसात में  जल रही है दुनिया सारी ना जाने कैसी आग में।                                               शैल सिंह  

''दिल्ली और मुंबई के रेप कांड पर मेरी ये कविता''

दुष्कर्म जैसे वारदात और नाबालिगों को शह देती व्यवस्था पर ऐसे अपराधियों की सजा पर बिना मतलब बार-बार बहस क्यों छिड़ती है।कम उम्र का बच्चा अपना पौरुष बल दिखलाकर एक किशोरी का ,अपने से बड़ी उम्र की महिला का अस्मत तार-तार करने में सक्षम होता है , उस समय तो अपनी उम्र से बड़ा हो जाता है फिर इतने जघन्य अपराध के लिए सजा के वक्त नाबालिग क्यों करार दिया जाता है और सभी लोग मनोवैज्ञानिक क्यों बन जाते हैं ,इसी लिए बार-बार ऐसी घटनाएँ दुहराई जाती हैं ,इसका निदान तभी सम्भव है जब बालिग ,नाबालिग का मोहरा ना इस्तेमाल कर अपराध के बदले कड़ी से कड़ी सजा सुनिश्चित की जाये।  दिल्ली और मुंबई के रेप कांड पर   कलुषित हो रही संस्कृति मानवता का ह्रास होता सुरभित उपवन है आज समरसता का सार खोता चमन से मद में सौरभ,नीला अम्बर बहक गया है हर सुमन,कली-कली जंगल-जंगल दहक गया है। विद्रूप हो गया है समाज का मन फटिक सा दर्पण हृदय पात्र क्यूँ है रीता करो न अधर पे हँसी अर्पण जहाँ विचरते आज़ाद पंछी वहाँ कोला...

हम कश्मीर नहीं देंगे

हम कश्मीर नहीं देंगे चाहे जितनी चले शमशीर हम कश्मीर नहीं देंगे कश्मीर भारत माँ का चीर हम मिटने तस्वीर नहीं देंगे । कश्मीर कोई मसला नहीं कि समाधान खोजा जाये कश्मीर कोई ज़ायदाद नहीं कि व्यवधान बोया जाये अलगाववादी जाके मांगे भीख कांसा लेकर पाकिस्तान से उठ रही ताल ठोंक कर चीख समूचे हिन्दुस्तान से कश्मीर लिए जां देंगे लाखों वीर बनने मन्सूबों की खीर नहीं देंगे कश्मीर भारत माँ का चीर हम मिटने तस्वीर नहीं देंगे । कश्मीर देश की ताव,मूँछ,शान, सिरमौर,जान हमारा है भारत की ममतामयी गोद का अहम अंग आन दुलारा है इतना नाक में मत कर दम ना घोंप घात कर पीठ में तीर कश्मीरी हवा,फ़िज़ा भी मेरी है हद पर फोड़ देंगे नकशीर छलनी कर देंगे टांगे सीना चीर बनने मन्सूबों की खीर नहीं देंगे कश्मीर मेरी भारत माँ का चीर हम मिटने तस्वीर नहीं देंगे ।   कितने नमकहराम भिखमंगे हैं  खुदा के ये फ़रिश्ते धूर्त हैं जाना खाते-पीते भारत भूमि का गाते पाकिस्तान का गाना , हम कहते जियो और ...