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सितंबर 2, 2018 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

" बस चितवन से पलभर निहारा उन्हें "

कविता मेरी कलम से तुम जो आए तो आई चमन में बहार सुप्त कलियाँ भी अंगड़ाई लेने लगीं चूस मकरंद गुलों के मस्त भ्रमरे हुए कूक कोयल की अमराई गूंजने लगीं । फिर महकने लगी ये बेरंग ज़ि...