" बस चितवन से पलभर निहारा उन्हें "
कविता मेरी कलम से तुम जो आए तो आई चमन में बहार सुप्त कलियाँ भी अंगड़ाई लेने लगीं चूस मकरंद गुलों के मस्त भ्रमरे हुए कूक कोयल की अमराई गूंजने लगीं । फिर महकने लगी ये बेरंग ज़ि...
ना मैं जानूं रदीफ़ ,काफिया ना मात्राओं की गणना , पंत, निराला की भाँति ना छंद व्याकरण भाषा बंधना , मकसद बस इक कतार में शुचि सुन्दर भावों को गढ़ना , अंतस के बहुविधि फूल झरे हैं गहराई उद्गारों की पढ़ना । निश्छल ,अविरल ,रसधार बही कल-कल भावों की सरिता , अंतर की छलका दी गागर फिर उमड़ी लहरों सी कविता , प्रतिष्ठित कवियों की कतार में अवतरित ,अपरचित फूल हूँ , साहित्य पथ की सुधि पाठकों अंजानी अनदेखी धूल हूँ । सर्वाधिकार सुरक्षित ''शैल सिंह'' Copyright '' shailsingh ''