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खतों के मजमून

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शैल सिंह                                                                                                                                                                समझ में नहीं आता कहाँ से आरम्भ करूँ,आज जब कुछ लिखने बैठी तो बीते हुए समय की तमाम छोटी-छोटी घटनाएँ जेहन में कहानी बनकर उभर आईं। लिखने की प्रवृत्ति बचपन में ही प्रबल हो उठी थीं शायद,तभी तो कक्षा तीन की अबोध सी पगली कही जाने वाली तानी ने अपनी लेखन शैली से बड़े-बड़े काम कर दिखाए। जिस उम्र में अभी बच्चे कलम दावात पकड़ते थे उस समय तानी अड़ोस-पड़ोस के लोगों का भावप्रवण,लच्छेदार चिट्ठियां लिखा करती थी,वह समय य...