ऐ कविता
ना जाने है क्यों सुस्त धार मेरे कलम की जो लहराते उर के समंदर की सरदार थी छटपटाता है अन्तस उमड़ते कितने भाव उदास मन को है कविता आज तेरी तलाश बुझा दे कागज़ पर अनकहे भावों की प्यास अश्रु की बूंद से लिख दे कथा ज़िन्दगी की हंसा दे रूला दे मिटा दे तृषा ज़िन्दगी की मुस्कुराये सदा कविता में मन का अहसास ऐ ख़ामोश शब्दों अश्क अब पिया नहीं जाता मन के गहरे समंदर का सफ़र तय किया नहीं जाता मन के उद्गारों से इतना ना रहा करो नाराज़ लौटा दो फिर से मेरा वहीं पुराना अन्दाज लफ़्ज़ों का खजाना चूक ना जाये कहीं ज़िन्दगी ही ना कर जाये बगावत कहीं पीरो दे खूबसूरत सपने कविताओं में संजो दे सुनहरी यादें कविताओं में महफूज़ कर दे खट्टे मीठे अनुभवों के लहर अवशेष पल हैं बस ,उम्र के ढल रहे पहर हर विधा के दीप प्रज्ज्वलित कर दो कविताओं में ना जाने कब ज़िन्दगी की धूप छुप जाये घटाओं में। शैल सिंह सर्वाधिकार सुरक्षित