ईश्वर भी इतना अस्मर्थ हुआ क्यों
उत्तराखंड की त्रासदी पर ईश्वर भी इतना अस्मर्थ हुआ क्यों अरे मेघ जलवृष्टि चाहा था प्रचण्ड जल प्रलय का ऐसा हाहाकार नहीं सूखी बंजर धरती में अंकुर फूटे धन,जन क्षति का ऐसा चित्कार नहीं। प्राकृतिक छटा के मोहपाश ने लील लिए बेकसूर जीवन जाने कितने तेरी क्रूरता पार की आंकड़ा तड़प बता सिहर उठते,जीवित हैं जितने। देवभूमि दरश की भूखी आँखों का यम से यह कैसा साक्षात्कार हुआ कुछ काल के गाल में गए समा कुछ को भष्मासुर का क्रूर दीदार हुआ। कैसे जज़्ब करें अपनों के खोने का ग़म वादी ने आत्मसात किये हैं जो रूह कंपाने वाली अलकनंदा,मंदाकिनी ने बर्बर वहशियात किए हैं जो। भगीरथ तेरी उद्दंड भयावह क्रीड़ा जो विस्फारित दृगों ने देखा अचंभित अथाह छलकाया था जल का सागर फिर भी प्यासा तरसा तन कम्पित। जाने किस कन्दरा दुबक गए देव असहाय ,बेसहारा कर श्रद्धालुओं को उत्पात हुआ केदारनाथ के गढ़ में जिंदगी की हवाले मिटटी बालूओं को। आस्था का ये कैसा इतिहास रचा अपने अस्तित्व के होने या ना होने का अंधभक्ति का ये ...