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नवंबर 13, 2022 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

ईश्वर भी इतना अस्मर्थ हुआ क्यों

उत्तराखंड की त्रासदी पर ईश्वर भी इतना अस्मर्थ हुआ क्यों अरे मेघ जलवृष्टि चाहा था प्रचण्ड जल प्रलय का ऐसा हाहाकार नहीं सूखी बंजर धरती में अंकुर फूटे धन,जन क्षति का ऐसा चित्कार नहीं। प्राकृतिक छटा के मोहपाश ने लील लिए बेकसूर जीवन जाने कितने तेरी क्रूरता पार की आंकड़ा तड़प बता सिहर उठते,जीवित हैं जितने। देवभूमि दरश की भूखी आँखों का यम से यह कैसा साक्षात्कार हुआ कुछ काल के गाल में गए समा कुछ को भष्मासुर का क्रूर दीदार हुआ। कैसे जज़्ब करें अपनों के खोने का ग़म वादी ने आत्मसात किये हैं जो रूह कंपाने वाली अलकनंदा,मंदाकिनी ने बर्बर वहशियात किए हैं जो। भगीरथ तेरी उद्दंड भयावह क्रीड़ा जो विस्फारित दृगों ने देखा अचंभित अथाह छलकाया था जल का सागर फिर भी प्यासा तरसा तन कम्पित। जाने किस कन्दरा दुबक गए देव असहाय ,बेसहारा कर श्रद्धालुओं को उत्पात हुआ केदारनाथ के गढ़ में जिंदगी की हवाले मिटटी बालूओं को। आस्था का ये कैसा इतिहास रचा अपने अस्तित्व के होने या ना होने का अंधभक्ति का ये ...

ये वादियां,फिजायें दे रहीं आमन्त्रण

ये वादियां,फ़िज़ाएं दे रहीं आमन्त्रण  कुर्ग, कोडईकनाल, मुन्नार, लोनावाला अवकाश का आनंद लेने चलें खंडाला , कहीं बीत ना जाये गरमी की छुट्टियां उधेड़बुन में खुल ना जाये झट स्कूल अनदेखा,अविगत अनुभव करने का फिर कचोटता रह ना जाये चित शूल , वन की विलक्षण वनस्पतियां देखने अनुपम उद्यान,रंग-विरंगे उपवन का ये वादियां,फिजायें दे रहीं आमन्त्रण लुत्फ़ उठाने को निरूपम मौसम का , पर्यटन के अनेक रूपों का रोमांचक एहसास कराने विलक्षण जहान का कल-कल बहते झरने पहाड़ बीच से साक्षात् दृश्य डूबते हुए अंशुमान का , सावन की बरसती रिम-झिम फुहारें उस पर अप्रतिम सौन्दर्य प्रकृति का भीनी-भीनी ख़ुश्बू सुहाये पावस की ठंडी हवा के झोंके नैसर्गिक सुंदरता , हरी-भरी खूबसूरत लगती पहाड़ियां झरनों के चतुर्दिक चादर बादल का कण-कण स्वागत  करती मुग्ध धरा मानसून के जीवन्त सुरभित रंग का , प्राकृतिक सुवास से प्राण प्रस्फुटित पेड़-पत्ते,जीव-जन्तु ,नदी,पोखर का छटा मनोहर भाये सुंदर गोधूलि की शांत,एकांत सदाबहार गिरि दल का , प्रकृति का बेजोड़ उपहार समेटे पर्वत  अलौकिक अनुभूति,मोह...