'' देश भक्ति कविता '' घटा भी बरसी ऐसे आज धाड़-धाड़ कर
'' देश भक्ति कविता '' घटा भी बरसी ऐसे आज धाड़-धाड़ कर चिता पर दुलारों तेरी श्मशान रो रहा है कैसे करें अगन हवाले जहान रो रहा है धरा रो रही है नीला आसमान रो रहा है जनाज़े पर तिरंगे का अपमान रो रहा है , भृकुटी तनी,आपा खोया,त्योरियां चढ़ीं लाल किले के बुर्ज़ ने तोड़ दिया संयम छल-छद्म के बदले मन भड़की चिन्गारी नरम रवैयों का सब्र ने खोल दिया बंधन, मौत का पाई-पाई कर्ज़ चुकाने को हम माँ की सौगंध वर्दी तन पे सजा लिये हैं कर अश्त्र ले दस-दस लाशें बिछाने का सरहद पार जाने का वीणा उठा लिये हैं , ललकार रहीं उठती चिताओं से लपटें पाकिस्तान को नेस्तनाबूंद कर देने को हर आंसू हर आह से भड़क रहा शोला ब्याज सहित जख़म वसूल कर लेने को , दग्ध चीत्कार पर माँ-बहनों परिजनों के पाषाण हृदय के भी आँसू निर्बाध उमड़े धाड़-धाड़ कर बरसी घटा भी आज ऐसे जब सुहागन के माँग की लालिमा उजड़े , तिरं...