'' अमर अब्दुल कलाम ''
अमर अब्दुल कलाम तेरी सच्ची देशभक्ति तिरे किरदार को सलाम सफ़र के नेक इरादों वाले तहे दिल से परनाम । क़बा-ए-जिस्म छोड़ कर कब तस्वीर बन गया हर जुबां पे अपने नाम का वो कलमा गढ़ गया कली,फूल रो रहे बिछड़ तुझसे माहताब सितारे समां,फ़िजां सदायें दे रहीं तुझे अहबाब तुम्हारे । हिन्दू चाहिए ना हिन्दुस्तान को मुसलमां चाहिए तुझसा नेक दिल हिन्दोस्तां को रहनुमां चाहिए जिसे जाति,घर्म ,किसी मज़हब से ना हो राब्ता तेरे रूपों में ढला तुझसा जुनूनी इन्सान चाहिए । जीस्त सरफ़रोश कर दिया जिसने देश के लिए उसके कितने शाहकार हुए ख़ुलूस,वेश के लिए जगी आँखों में जिसने ख़्वाब के जुग़नू जला दिए सपने वो नहीं जो देखो नींद में,ऐसे गुर बता दिए । जो थका,हारा,न रुका कभी,रहा ख़ाब को जीता कंकरीली,पथरीली,पगडंडियाँ सदा रहा चलता कभी बुझ न सकेगी जो उसने दिखाई है रौशनी उसकी दिखाई राह पर चलेगा ये मुल्क़ है यकीं । जिसकी ज़िंदगी का सरापा...