बेटियाँ घर की रौनक
बेटियाँ घर की रौनक जिस घर में सुता जैसी रत्ना ना हो जिस घर में धिया जैसी गहना ना हो उस चमन का कोई पुष्प पावन नहीं जिसे अनमोल ऐसी नियामत मिली उस सा भाग्यवान धनवान कोई नहीं …। दहेज़ की सूली चढ़ती बहू बेटियाँ मारी जातीं अजन्मीं केवल बेटियाँ अंकुशों की हजार पांवों में बेड़ियाँ जिस आँचल अनादर तेरा हो परी कभी आँगन ना गूँजे उस किलकारियाँ …। जिस घर …। मानती हूँ कि धन तूं पराई सही रौनकें भी तो तुझसे ही आईं परी बजी दहलीज़ तुझसे शहनाई परी अपने बाबुल के आँखों की पुतली है तूं भैया के कलाई की रेशमी सुतली है तूं जिस घर …। मेरे जिस्म की अंश तूं मेरी जान मेरे अंगने की तुलसी तूं मेरी जान मेरे बगिया की बुलबुल तूं मेरी जान तुझसे ही चहकता घर आँगन मेरा तेरे अस्तित्व से घर की पावन धरा जिस घर …।