गुरुवार, 25 जुलाई 2019

" एक वेश्या का दर्द "

मैं जिस्म बेचती हूँ चन्द नोटों की खातिर
नाचती कोठों पर हूँ चन्द नोटों की खातिर
रातें रंगीन करने वाली मैं इक बेबस नायिका
हँसके दर्द सहती वेश्या बन चन्द नोटों की खातिर ।

करती संगीन जुर्म चन्द नोटों की खातिर
बदलती हर रात शौहर चन्द नोटों की खातिर
नित नये ग्राहकों संग खेलती जिस्म निलाम कर  

पोषती हूँ धंधा विरासत का चन्द नोटों की खातिर ।

घर टूटता है किसी का ग़र वजह से मेरी

जग लानत न दे नहीं होता सब गरज से मेरी

रूह की भी सजाती शैय्या हाय जिस्म के बगल

सफेदपोश कहते बदचलन खेल कर जहन से मेरी ।

जब्त अधरों की लाली में मुस्कुरा कर
छलकते आँसूओं को पलकों तले ढाँपकर 
मन की पावन वेदी पर करती जमीर का हवन

पालती आजीविका कसबिन,पतुरिया के नाम पर ।

न कोई हमदर्द मेरा ना हमसफ़र कोई
भूखे भेडियों के शौक की लजीज स्वाद हूँ
सुलगते अरमानों पर हवश के जुटाती संसाधन 

वहशत के बिस्तर पर लेटी जिन्दा सजीव लाश हूँ ।

मैं हूँ गम का ईलाज मैं ही दर्द की दवा
कहते लोग अय्याशी का अड्डा कोठा मेरा

बन समाज का मुखौटा नाची पांव बाँध घुँघरू
महफिलों के महानायक रखते नाम तवायफ मेरा ।

करके सोलह सिंगार भी अधूरी दुल्हन
कर वदन की नुमाइन्दगी वसूलती रकम
रईसजादों के खिलौनों का बाजार मैं अभागन
वे अपना सौदा कर बनें दूल्हा मैं बदनाम सुहागन ।

सर्वाधिकार सुरक्षित                
                            शैल सिंह

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