मंगलवार, 10 मई 2022

बारिश पर कविता

             बारिश पर कविता 


पूरवा भी नहीं देती आभास,मेघ आगमन का तेरे
पपीहा,कोयल,मयूर अधीर,हैं अभिवादन को तेरे ,

किससे भेजूँ पाती तुमतक,कैसे भेजूँ तुम्हें संदेशा 
रूख से तेरे कहीं लगे न मॉनसून का मेघ अंदेशा
क्यों सज सँवर कर ऐंठी हो,मेंह लगाकर काजल
क्यों अनशन पर बैठे, खोलो द्वार हृदय के बादल ,

बारिश की बूँदों का भेजो, घटा ज़रा नज़राना तुम
रेती से हाथ मिलाने का,ढ़ूंढ़ कर कोई बहाना तुम 
मेहरबानी कर बरसो आ बादल,तपन भगाओ दूर 
धरती का आँचल है सूखा,सपने हो रहे चकनाचूर ,

कैसे करें मनुहार तुम्हारा,बहुत दूर देहात तुम्हारा
कैसे तोड़ें दम्भ तेरा,हो पराजित अभिमान तुम्हारा
सूरज आतप बरसाता, फूट रही पृथ्वी से चिन्गारी
अभिशप्त सा लगता जीवन, सूख रही हैं फुलवारी ,

सभी कुएं प्यासे नीर लिए,सागर उदासा क्षीर लिए 
तरस रही सीपी की मोती,स्वाती की इक बूँद लिए 
हे इंद्रदेव अब कृपा कर बरसें,दहक रही है धरती
फलक निहारते ठूँठे दरख़्त,सब खेत पड़े हैं परती ,

जनजीवन बेहाल तपिश से,मेघ मल्हार सुनाओ ना
वृष्टि के अविच्छिन्न धार से,अतृप्त तृषा मिटाओ ना
पावस की पहली सौगात से,धरा को सरसाओ मेघ
भर दो नथुनों में सोंधी गंध अब नहीं तरसाओ मेघ ।
 
सर्वाधिकार सुरक्षित 
               शैल सिंह 

सोमवार, 9 मई 2022

मैं तो ऐसी नगीना थी ऐ संग दिल

मैं तो ऐसी नगीना थी ऐ संग दिल


मैं तो ऐसी नगीना थी ऐ संग दिल
तराशकर हीरे सा तुम निखारे तो होते

आती अवरोधों की तोड़ जंजीरें सब
कभी आवाज़ दे तुम पुकारे तो होते ,
टूटे दिल की किरिचें संभाले है रखा
जोड़कर रेज़ों को तुम निहारे तो होते

मैं तो ऐसी नगीना थी ऐ संग दिल
तराशकर हीरे सा तुम निखारे तो होते ।

भोली मस्ती थी नादां से अहसास थे
नाज़-नखरे कभी तुम संवारे तो होते ,
मोम की गुड़िया सी मैं जाती पिघल
प्यार की आँच से तुम दुलारे तो होते ,

मैं तो ऐसी नगीना थी ऐ संग दिल
तराशकर हीरे सा तुम निखारे तो होते ।

छोटी-छोटी मेरे ख़्वाहिशों की मीनारें
मन समंदर उतर तुम विहारे तो होते ,
हद-ए-बेरूख़ी पर सब्र का बांध तोड़ा
गाल गीले कभी तुम पुचकारे तो होते ,

मैं तो ऐसी नगीना थी ऐ संग दिल
तराशकर हीरे सा तुम निखारे तो होते ।

भावों की बह नदी में डूबी उतरायी मैं 
भावों की लहरों पर तुम उतारे तो होते ,
जग के ताने, छींटे, व्यंग्य,फिकरे सहे
तंज के झंझावातों से तुम उबारे तो होते ,

मैं तो ऐसी नगीना थी ऐ संग दिल
तराशकर हीरे सा तुम निखारे तो होते ।

तुम ज़िद पर अड़े मैं अपनी उम्मीद पर
कशमकश की ढहा तुम दीवारें तो होते ,
आस की ज्योति आँखों में होठों पे नाम
आ कर दहलीज़ पाटे तुम दरारें तो होते ,

मैं तो ऐसी नगीना थी ऐ संग दिल
तराशकर हीरे सा तुम निखारे तो होते ।

फासले सब मिटा सुन सदा ज़िन्दगी की
मुश्क़िलों के दरमियां तुम सहारे तो होते ,
कभी प्रीत के हर्फ़ से नम व्यथा कंचुकी
आ द्वारे ज़ज्बातों के तुम निथारे तो होते ,

मैं तो ऐसी नगीना थी ऐ संग दिल
तराशकर हीरे सा तुम निखारे तो होते ।

                                       शैल सिंह













बचपन कितना सलोना था

बचपन कितना सलोना था---                                           मीठी-मीठी यादें भूली बिसरी बातें पल स्वर्णिम सुहाना  नटखट भोलापन यारों से क...