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काश इन हर्फों में आवाज होती

          काश इन हर्फों में आवाज होती    सहसा क्या हुए उनसे रूबरू  शर्म से सुर्ख हो गये रूख़सार मेरे रौनक छा गई था बड़ा खुश़्क आलम आ गया शहंशाह ख़्वाबों का दरबार मेरे शोख लटें चूम झुकी पलकों से कहने लगीं देखो नजरें उठा आए अंजुमन में दिलदार तेरे । तुम्हीं से हसीं थी मेरी ज़िन्दगी तुम्हीं बन ग़ज़ल थे मचले अधर पर हुई आज खण्डहर सी जीर्ण हालत मेरी क्यों गये तन्हा छोड़ मरूस्थल में सफर पर आजा हर सवालों का हल बनके दहलीज मेरे देखे एहसासों का ताजमहल राह ऐ अजीज मेरे । माना जुदाई में तुम बिन मरे ना पर तन्हाई में भी तो जी भी सके ना मुझ जैसे तड़पकर मोहब्बत में तो देखो अश्क़ बहा भी सके ना और पी भी सके ना तुझे भूल जाने का फन भी तुम्हीं से सीख लेते  मगर जज़्बात मेरे तेरे अन्दाज़ सीख भी सके ना । काश इन हर्फ़ों में आवाज होती मेरे अल्फ़ाजों की तुम सदा सुन लेते करें बेचैन यादें बीते लम्हों को याद कर यही बेकरारी तुम भी अहसासों में गुन लेते कितना उचाट बिन तेरे मेरे ज़िन्दगी का दायरा तुम भी करके बंद आँखें मुझ सा ख़्वाब बुन लेते । सर्वाधिकार सुरक्षित शैल सिंह