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" कोहिनूरों से भी कीमती अनमोल हैं यादें "

" कोहिनूरों से भी कीमती अनमोल हैं यादें " शबनम हुई है शोला दिल में छुपाऊं कैसे चन्द लफ़्ज़ों में दास्तां इतनी सुनाऊं कैसे हो गये पुराने ग़म जवां देख उसे बज़्म में  ग़ज़ल सामने उस बुत के गुनगुनाऊं कैसे । ये इक आईना है जो लिखी है मैंने ग़ज़ल हो गईं आँखें सुनने वालों की ऐसे सजल शिकवा,गिला करना मुनासिब ना समझा  पिरो दर्द दिल का  गुनगुना दी मैंने ग़ज़ल । कुछ अल्फ़ाजों में बयां कर पाती हूँ सुकूं कुछ क़ागजों पर लिख कर पाती हूँ सुकूं कुछ परछाईयां रखी बसा दिल,आँखों में  कुछ धड़कन,सांसों में छुपा पाती हूँ सुकूं । कैसे कर दूं आजाद यादों को आगोश से बंद मन की तिजोरी में हैं जो ख़ामोश से कोहिनूरों से भी कीमती अनमोल हैं यादें क्यूँ हर्फ़ों तुम भड़क जाते हो आक्रोश से । सर्वाधिकार सुरक्षित शैल सिंह

" सारी-सारी शब अपनी याद में जगाते रहे "

सारी-सारी शब अपनी याद में जगाते रहे आती हर बात याद डंसती बैरिन सी रात प्यासे रह गये जज़्बात ऐसी हुई हिमपात । मेरे आँसुओं का कतरा वो दरिया जानके    प्यास बुझा चला गया  मुशाफिर की तरह न परखा उदासी न समझा दर्द अश्क़ का बेपरवाह दिल-ए-ग़म से राहग़ीर की तरह । सोचती क्यूं बहे देख उसे अश्रु ये फ़िज़ूल   ढले अनमोल अश्क़ क्यूं इश्क़ में फ़िज़ूल भान होता न था वो कभी मुझ पर निशार  बहने ना देती सब्र तोड़ आँखों से फ़िज़ूल । वो आँखों को हसीं ख़्वाब बस दिखाते रहे सारी-सारी शब अपनी याद में जगाते रहे जो काजल लगाती आँखों में बड़े शौक से वे चित्र आरिज़ों पे स्याह रंग के बनाते रहे । लब से छेड़ती तरन्नुम है भर आती आँख लब पर खेलती तबस्सुम ढल जाती आँस तरन्नुम और तबस्सुम करें  बज़्में गुलज़ार  नादां ख़ुद को बेज़ार किये गातीं एहसास । आरिज़--गाल