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गुलजार हुआ है आंँगन

गुलजार हुआ है आंँगन  मेरी रौशन हुई है देहरी गुलजार हुआ है आंँगन खिला नन्हा सुकुमार सुकोमल इक फूल है घर के प्रांगण। कितना सुखद ये पल है लगे बेटी का लौटा शैशव है महके नवागंतुक से फुलवारी मिली सौगात हृदय को प्यारी। कानों में मिश्री घोलें  नन्हें की किलकारी मासूम से भोले मुखड़े की मुस्कान लगे अति न्यारी भींच लूं भर के अंक में अपने भरि-भरि नैन निहारी । मेरी रौशन हुई है देहरी गुलजार हुआ है आंँगन खिला नन्हा सुकुमार सुकोमल इक फूल है घर के प्रांगण।  नाना लेते मुन्ने की बलैंयां बलि-बलि जाऊं  मैं बलिहारी मामा मगन हो मंगल गाएं गूंज रही सोहर  से ओसारी नानी  बटुवा खोल उड़ावें गावें गोतिनें  मंगलचारी । मेरी रौशन हुई है देहरी गुलजार हुआ है आंँगन खिला नन्हा सुकुमार सुकोमल इक फूल है घर के प्रांगण । फूले न समाएं दादाजी झूमें अति प्रसन्न हो दादी  ताऊ-ताई बजवाएं बधाई झुलावें झूलना दोनों भाई नेग लुटायें फूफा पाहुने बुआ हुलसें कजरा  लगाई । मेरी रौशन हुई है देहरी गुलजार हुआ है आंँगन खिला नन्...

कविता--शहीद की विधवा की होली

शहीद की विधवा की होली देश लिए प्राण न्यौछावर कर  पिया खून की होली खेल गये , घाव लगी गम्भीर हृदय पर  कुदरत ने दी ऐसी पीर है कैसे सजे तन रंग फागुन का  हरे ताजे नयन के नीर हैं , चाव नहीं कोई भाव नहीं ना कोई खुशी रंगोत्सव की अभी सूखे नहीं आंचल गीले फाग फीके होली महोत्सव की , कैसे भाये साज होरी का बुझी नहीं राख अभी सजन की सबकी शुभ-शुभ होली होगी  मैं भई दुखिया जनम-जनम की , मांग हुई सूनी रोली बिन किन संग खेलूं होली उन बिन धूप अनुराग की चली गई ख़ुशी जीवन की छली गईं , किनके गाल गुलाल मलूं मैं  सुनसान लगे विरान घर हँसि,ठिठोली वो संग ले गये   दे वेदनाओं का दुःखान्त प्रहर।                         शैल सिंह