बुधवार, 20 अक्तूबर 2021

“ हम हैं विश्वगुरु “

भारत फिर से विश्व के मानस पटल पर एक अलग पहचान बना रहा है ।                           

                            ' हम हैं विश्व गुरु '

    हो चाँद हमारी मुट्ठी में हमें करना सूरज भी बस में 
    उत्तुंग शिखर से सागर तक हम चमकें सारे जग में ।

शांति,अमन के हम प्रहरी तुझे पाक उत्पात मचाना आता 
जब ख़ुश्बू होगी आम हमारी करनी पर होगा तूं पछताता ।

हम बेजा वक़्त नहीें गंवाते तुझ सा असभ्य हरकतें कर के 
करना मुकाबला तो आओ ना पथ विकास के चल कर के ।  

भगवान हमारे मस्जिद में रमते ख़ुदा रहता मन्दिर में तेरा
हम सुनें अज़ान मस्जिद की सुने तूं स्त्रोत मन्दिर का मेरा ।

हम मलयज सा महक फ़िज़ा में बिखरा रहे दिन-प्रतिदिन 
ग़र देते लोबान का तुम सोंधापन आकंठ लगाते निशदिन ।

चाँद पर होगा घर अपना करेगा सूरज भी मेहमाननवाजी 
बिछाओ चौपड़ की कोई भी बिसात हम जीतेंगे हर बाजी ।

जल,वायु,अवनि,अंबर अपना सपना हमसे ही ज़माना हो 
हम नहीं ज़माने से अभिलााषा जग हम पर ही दीवाना हो ।

हमसे रौशन शफ़क़,हमारे केतन को नस्तक विश्व करेगा 
जो साख ढहाया हिंद के गौरव की जल आके यहाँ भरेगा ।

हम विश्व पटल पर उभर रहे हैं नव युग की लाली बनकर 
तरल,विनम्र हैं मगर डटे वलिष्ठ,साहसी,बलशाली बनकर ।

काल चक्र कृपालु हमपर विश्व का प्रतिनिधित्व हमीं करेंगे 
नित उत्थान के डगर अग्रसर दुनिया का नेतृत्व हमीं बनेंगे ।

हमें विश्व से करना मुकाबला सबसे आगे होंगे हिन्दुस्तानी
जहान से लोहा मनवाना नहीं है जग में हम सा कोई सानी ।

पार्श्व में तारे अम्बर के झण्डा शान से अन्तरिक्ष लहराएगा
ताज विश्वगुरू का शीर्ष हमारे जग जय भारत जय गायेगा ।

सर्वाधिकार सुरक्षित 
शैल सिंह

सोमवार, 18 अक्तूबर 2021

लॉकडाउन की तन्हाई पर कविता

गुमसुम सी है सुबह,सुनसान शाम आजकल 
ख़बरदार मेरी तन्हाई में न डाले कोई ख़लल ।

करीब मेरे बेहिसाब ख़यालों के आशियाने हैं 
दिल के बन्द कक्षों में कई यादों के ख़ज़ाने हैं
इसीलिए तन्हाईयां मुझे तनहा होने नहीं देतीं
जगाकर रखतीं रात भर कभी सोने नहीं देतीं ।

मुझे भी हो गई अकेलेपन से मुहब्बत इतनी
भाईं नहीं किसी की भी नजदीकियां जितनी
ख़ुशी ना उदासी बैठे हैं ख़ामोश सुबहो-शाम
लगने लगीं सुखदायिनी भी तन्हाईयां कितनी ।

फिर पुराने मौसम आ गये लौट के तन्हाई में 
अपनों से बिछड़ना दर्द,ग़म जख़म जुदाई में
जो बीता,गुजरा लिखा मन बहला लिया मैंने
और तन्हाई में तन्हा ही जश्न मना लिया मैंने ।

विरां वक़्त मग़र हैं बिचरते माज़ी के कारवां 
मुद्दतों बाद भी महसूती आज भी वही समां
अतीत के सुरंगों में संजो रखी जो असबाब
मेरी तन्हाईयां उनसे ही गुलजार औ आबाद ।


असबाब--सामान,वस्तु
सर्वाधिकार सुरक्षित
                शैल सिंह



रविवार, 17 अक्तूबर 2021

" बस चितवन से पलभर निहारा उन्हें "

वो जो आए तो आई चमन में बहार
सुप्त कलियाँ भी अंगड़ाई लेने लगीं
चूस मकरंद गुलों के मस्त भ्रमरे हुए
कूक कोयल की अमराई गूंजने लगीं ।

फिर हृदय में अभिप्सा उमगने लगीं
नयन में चित्र फिर संजीवित हो उठे          
मृदु स्पन्दन अंग की उन्मुक्त सिहरनें 
पा आलिंगन पुन: पुनर्जीवित हो उठे ।

स्वप्न पलकों के आज इन्द्रधनुषी हुए
निशा नवगीत सप्तस्वर में गाने लगी
हृदय के द्वारे मज़मा आह्लाद के लगे
चाँदनी और शोख़ हो मुस्कराने लगीं ।

अधर प्यासे वो सींचे अधर सोम से 
मन के अंगनाई शहनाई बजने लगी
बस चितवन से पलभर निहारा उन्हें
भोर की तत्क्षण अरुणाई उगने लगी ।

फिर से बेनूर ज़िन्दगी महकने लगी 
जब से ख़ुश्बू उनकी घुली साथ है
हरसू लगने लगीं अब तन्हाईयाँ भी
उर घुला मधुर मखमली एहसास है

फासले हुए ऐसे नदारद ज़िन्दगी से 
खुशनुमा-खुशनुमा हर पल आज है
जब से आए हैं वो वीरां ज़िन्दगी में
तब से सारा शहर लगता आबाद है,

भयभीत होती नहीं हो घनेरा तिमिर
चाँद सा हसीं महबूब का अन्दाज़ है
उनसे रूठना भी अब ना गवारा लगे 
बाद अरसे के सुर को मिला साज है । 

हर आहट पर उर के ऐसे हालात हैं
लगे उर्वी से मिलने उतरा आकाश है
मेरी आकुलता को अब तो विराम दो
चौखट थामें खड़ी आतुर भुजपाश हैं ।

अभिप्सा--प्रबल इच्छा, गात--देह

बे-हिस लगे ज़िन्दगी --

बे-हिस लगे ज़िन्दगी -- ऐ ज़िन्दगी बता तेरा इरादा क्या है  बे-नाम सी उदासी में भटकाने से फायदा क्या है  क्यों पुराने दयार में ले जाकर उलझा रह...