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नव वर्ष पर कविता

'' नव वर्ष मुबारक हो सबको '' नए साल ने दस्तक दी है नव वर्ष मुबारक हो सबको , बीते बरस के खट्टे-मीठे अनुभव भेदभाव सब बैर बिसारकर   नव वर्ष का आदर स्वागत करें हम खुशियों का उपहार लूटाकर , दिलों में प्रीत की जोत जलाएं आत्मीयता का पुष्प बिछाकर घर,समाज,देश हर रिश्ते संग आह्लाद,नेह का घन बरसाकर , हम सब मिल यह संकल्प करें नव वर्ष विश्व का मंगलमय हो बहे जीवन सबके ज़ाफ़रानी बयार दुःख,दर्द,रोग,शत्रुओं का क्षय हो , उमंग,तरंग से पुलकित अन्तर्मन   हर्ष उल्लास से जीवन सुखमय हो कल्पनाएं,अभिलाषाएं,आशाओं की कभी ना राह किसी की कंटकमय हो , नव वर्ष नई स्फूर्ति नव किरण बिखेरे खुशियों के फूल खिले घर आँगन में हर सुबह सुहानी शुभ संदेशों की ध्वजा फहराये हर प्रांगण में, दैन्य,दरिद्रता,दुःख,कष्ट तमस मिटे नाचे मोरनी कूके कोयल कानन में साहस,सुयश,सद्ज्ञान,विज्ञान का परचम लहराये हिन्द के दामन में, नए साल ने दस्तक दी है नव वर्ष मुबारक हो सबको , जय हिन्द ,जय भारत                   ...

'' ग़ज़ल '' दोस्त की बेवफाई पर

  ग़ज़ल '' दोस्त की बेवफाई पर  दोस्ती के तक़ाजे क्या उसने ना जाना सरेआम रूसवा हुई दास्ताँ दोस्ती की , वफ़ा करते-करते चोट खाई ना होती मलाल इतना ना होता दिल के नासूर का तिल-तिल ना जलते यूँ बेवफ़ाई की आग में आया होता ख़ुदगर्ज को ग़र उल्फ़त का सलीका , ग़र जानती दिल में बेवफ़ा के खंजर करीब दिल के कभी इतना आने ना देती न गैर को अपना महसूसने की नादानी होती ना वफ़ाई के एवज में जग में ऐसी रुसवाई होती , खुद कुसूरवार वही खार व्यवहार में बेबुनियाद इल्ज़ाम लगा किया है घायल उसकी बेरंग दुनिया से ख़ुश हूँ आज़ाद हो मेरे तो बिंदास शख़्सियत की दुनिया है क़ायल , मुझे तनहा सफ़र में ना समझे कभी वो  मेरे साथ राहों पे भीड़ सदा चलती रहेगी ऐसी नाचीज़ खोकर हाथ मलेगी अकेली वो  उसके मग़रूर ज़ेहन में तस्वीर अखरती रहेगी , लब पे मेरे तबस्सुम खिले फूलों सा उसकी ज़िंदगी में मुबारक़ हों तन्हाईयाँ  महके संदल की खुश्बू हवा-ए-गुलिस्ताँ मेरे क़हर ढाएं फ़रामोश के ऊपर मेरी मेहरबानियाँ , गरूर इत्ता बेग़ैरत को किस...

अकेलेपन में ख़ुशी की तलाश

अकेलापन भी एक एकान्त साधना है एकान्तमिकता की मौनता भी अबूझ है मन को कहाँ से कहाँ भटका ले जाती है यही एकान्तमिकता कवि मौन मन को मुक्त रूप से कवितायेँ रचने के लिए शब्दों की समाधि में लीन कर उदासी को कविता कहानियों के संसार में ले जा जीवन का सार सिखा ,जता ,बता देती है । वीतरागी मन के लिए ,छीजती हुई जिंदगी के लिए एकान्त किसी विलक्षण औषधि से कम नहीं , यही कारण है कि एकान्त वास में मैं अपने अकेलेपन और उदासी के उत्सव को ,मन रमा कविताओं की विभिन्न विधाओं में मना लेती हूँ , मन होता विराट फ़लक पर रच डालूं ,उदासी के क्षणों में हुए चुप्पी के करुणा का सागर ,मन की कातर विह्वलता का संसार ,विलक्षण अनुभवों का बहाव जिसका माध्यम सारे दर्द की दवा बन जाये। कभी-कभी तो जैसे शब्दों का अकाल सा पड़ जाता है ,मन का उद्वेलन व्यक्त करने के लिए भाव होते हुए भी शब्द विलीन हो जाते हैं ,भाषा करवट ले ले उकताती है पर शब्द साथ नहीं देते और फिर निराशा जन्म लेकर गहन उदासी पैदा कर देती है । ये शब्द भी क्या धूप-छाँव का खेल खेलते हैं कभी तो उबार लेते हैं अपनी अमूल्य निधि की...

'' काला धन ''

मेरा देश बदल रहा है ,सरकार का यह सराहनीय कदम सर आँखों पर ,भ्रष्टाचारियों तुम डाल-डाल मोदी जी पात-पात गद्दे के नीचे,तकिये के नीचे,दीवान में रखी नोटों की गड्डियां मुँह चिढ़ा रही होंगी ,५०० की १००० की गड्डियां टीसू पेपर के मुकाबले भी नहीं रहीं,अब इनका क्या करोगे घूसखोरों आग लगाओगे या गंगा में बहाओगे नहीं-नहीं गंगा भी अपवित्र हो जाएँगी ,ऐसा करो इसे चबा जाओ तुम लोगों की पाचनशक्ति और हाजमा दुरुस्त हो जाएगी आगे और भी रास्ते अपनाने है काले धन कमाने को। भ्रष्टाचारी कभी भी बाज नहीं आएंगे। फिर भी परिवर्तन की आंधी में कुछ तो बदलाव आएंगे ही । सबका साथ सबका विकास , जय हिन्द ,जय भारत ,जय मोदी ,स्वच्छ भारत स्वतंत्र भारत ,हर-हर महादेव ,                    '' काला धन ''  मुझे कोई गम नहीं ,पास काला धन नहीं मोदी का जवाब नहीं कितना है कदम सही उड़ गयी होगी नींद किसी-किसी के आँख की छीन गया होगा करार धनकुबेर हैं जो बेपनाह की सुखानुभूति हो रही अपने उजले धन पर ऐसी गाज गिरा दी है मोदी ने काले धन पर वाह रे माँ लक्ष्म...

तमस मिटाऐं अंतर्मन का

चित्र
कहाँ दीपक की दीपशिखा में दंभ तनिक भी बोलो तो कहाँ दीपक के प्रज्वलन में है अहं तनिक भी बोलो तो , पर्व ज्योति का आया दीप बाल करें सिंगार तिमिर का अन्तर्मन के तज विकार आओ करें सिंगार तिमिर का , मावस की काली रजनी जगमग वर्तिका की ज्योति से आलस्य,कुंठा,भय,निद्रा मिटे दीप की अमर ज्योति से , चेतना का द्वार खोलता माटी का दीप जला अपना तन अज्ञानता का तिमिर मिटाता दीप लुटा कर अपना धन , आकाश जुगनूओं से जगमग दीपों से झिलमिल धरती साहित्य ,कला,संस्कृति ,ज्ञान दीपशिखा उरों में भरती , निज की आहुति दे नित दीपक पथ आलोकित करता स्वर्ण शिखा सी ज्योति बिखेर संसार सम्मोहित करता , दीप जलाएं शिक्षा का मानवता का ऊर्जा भाईचारे का नेह के घृत में चेतना की बाती तम मिटाऐं अंतर्मन का , अन्तर्मन की भावनाएं,संवेदनाएं प्रज्वलित करें प्रकाश अभिव्यंजना दीप की तब सार्थक जब हिय भरें उजास , हमारी संस्कृति के रंग-रंग रचा-बस...

तलाक और शरिया

तलाक तलाक तलाक के मसले को ना तो कानून सही कर सकता और ना ही शरीयत ,सिर्फ बहस और वाद प्रतिवाद के दौर में असली मुद्दा ही दबकर रह जायेगा । इस मसले का हल सारी मुस्लिम महिलाओं के हाथ में है यदि वह अपने साथ सदियों से हो रहे अन्याय के प्रति बगावत पर उत्तर जाएँ तो ,पर वो डरती हैं इस लड़ाई से कहीं अलग-थलग न पड़ जाएं ऐसी घड़ी में साथ देना होगा समाज को ,सभी वर्ग के लोगों को तथा हिंदुस्तान के सभी मानवीय संवेदनाओं को,मुस्लिम महिलाओं की सहनशक्ति ने ही बढ़ावा दिया मुस्लिम मर्दों को क्रूर से क्रूरतम अत्याचार और व्यवहार करने को सर से एड़ी तक बुर्का ,खुलकर साँस लेने की भी आजादी नहीं ,फैशन के अनुसार तथा बदलते हुए ज़माने साथ कितनों ने कुरीतियों को छोड़ ज़माने के साथ कदम मिलाया पर मुस्लिम धर्म में कोई बदलाव कभी नहीं आया न आएगा जब तक विचारों में आमूल परिवर्तन नहीं होगा जब तक सोच के फलक पर नई सोच हॉबी नहीं होगी ।                                                     ...

मन इतना आद्र है की बस .... मत पूछिये

     मन इतना आद्र है की बस  ....  मत पूछिये उरी में शहीद हुए हैं अपने वीर जवान जो उनकी श्रद्धांजलि में अभी शपथ लो हिंदुस्तान के नौजवानों डटकर इंतकाम लेने का सिलसिला तभी थमेगा जब घुसकर तुम भी पाकिस्तान के गढ़ में ऐसा हश्र करोगे मुँहतोड़ जवाब दे बेगैरत छिनालों के छैले ख़ेमे का । मच्छर,मक्खी सी माँऐं पैदा करतीं तादातों में वाहियात औलादें न तहजीब सीखातीं न कोई संस्कार बस जनती रहतीं हरामजादे न अफ़सोस उन्हें ना फर्क कोई गोजरों की एक टांग टूट जाने का गर महसूसती वज्र का पहाड़ टूटना मलाल होता कुछ खो जाने का । पर तेरी बहना तो थाल सजा बैठी थी इकलौते भाई की राहों में मेंहदी रचे हाथ भरी चूड़ियाँ जहाँ सिंगार तब्दील हो गए आहों में हसरत से देखती रस्ता जिन माँओं के आँखों से निर्झर आँसू उमड़े उन वीर सिपाहियों की शहादत पे नौनिहालों लेने होंगे फैसले तगड़े । शीघ्र फतह कर घर लौ...

वीर रस की कविता --ओए शुरू हो जा उलटे दिन गिनना

वीर रस की कविता --ओए शुरू हो जा उलटे दिन गिनना  क्यूँ पापों में निर्लिप्त निर्बाध बह रहे अनिर्दिष्ट दिशा में पाकिस्तान , क्यों सत्य,अहिंसा की पावन वेदी को हिंसात्मक बनाने पर हो तूले कश्मीर का तो सवाल नहीं पीओके पर नजर हमारी क्यूँ तुम भूले , छोड़िये नवाज़ शरीफ बुरहान वानी की तोतिये रट का सिलसिला मेरे घर का मामला था वो ग़द्दार,उसे उसके करनी का फल मिला , गर कुछ लेहाज बाकी तो पहले निज घर की बिगड़ी तस्वीर संवार तेरी व्यर्थ कोशिशें काश्मीरियों लिए शाख़ की ढहती दीवार निहार , छोड़ दो वानी का कल्ट खड़ा कर कश्मीरी युवाओं को भड़काना अन्तर्राष्ट्रीय मानकों ने इतना धिक्कारा पर तुझे नहीं आया शर्माना , क्यों उसकी फिक्र तुझे इस्लाम अनुसार जन्नत के मजे वो लूट रहा बहत्तर हुरों के अंगूरी रस का स्वाद इत्मिनान से वानी तो चूस रहा , वैश्विक पटल पे इतनी फ़जीहत देखले मक्कार तूं अपने को तनहा कहाँ गई जनाब की दादागिरी ओए शुरू हो जा उलटे दिन गिनना ,...

बता दो शेरों क्या औक़ात तेरे हिंदुस्तान की,

   ' वीर रस की कविता ' सीमाओं पर तो सब कुछ सहते तुम सेनानी फिर किस आक़ा के ऑर्डर का इन्तजार है आत्म रक्षा के लिए वीरों तुम पूर्ण स्वतंत्र हो हैवानों से निपटने का तुम्हें पूर्ण अधिकार है, स्वयं के जान की कीमत समझो सिपाहियों     दुश्मनों पर दागो गन ,बारूद औ एटमबम कायर बन कर राक्षसों के वंशज करते वार छप्पन गज सीने से टकराने का नहीं है दम,     खद-खद ख़ौल रहा जो आज खून जाबांजों इतना ख़ौफ़ दिखा फट जाए पाकिस्तान की बहुत खोये हैं लाल भारत माँ ने आज तलक बता दो शेरों क्या औक़ात तेरे हिंदुस्तान की, ऐसा उठा बवंडर शान,आन की बात सपूतों घर के मित्र-शत्रु का फर्क भी ध्यान में रखना बहुत हुई गाँधीगिरी मानवीयता बहुत दर्शाये असमंजस क्यों,पैलेटगन हिफ़ाजत में रखना, मुहूर्त बहुत ही अच्छा दुश्मन मार गिराने का मटियामेट इन्हें करना संकल्प ठानो दिग्गज़ों प्रीत पड़ोसी नहीं जानता बार-ब...

' क्रान्तिकारी कविता ' अविच्छिन्न अंग काश्मीर हमारा इसे न हाथ से जाने देंगे

 इस कविता के द्वारा मैंने हिजबुल मुजाहिदीन,जैश-ए-मोहम्मद और अलगाव वादी नेताओं तथा हाफिज सईद आदि जैसे आतंकी फैक्ट्रियों को चलाने वाले एवं भारत में अराजकता फैलाने वाले एवं अपने नापाक इरादों से कश्मीरी नौजवानों को गुमराह करने वाले सनकियों को समझाने वाले अंदाज में एक सन्देश देने की कोशिश की है ।  ' क्रान्तिकारी कविता '  अविच्छिन्न अंग काश्मीर हमारा इसे न हाथ से जाने देंगे, भटके नौजवां आतंकी बन काश्मीर के जर्रे-जर्रे में छैले छितरे नागफ़नी के काँटों से फुफकारें पाले नाग विषैले , क्यूँ रक्षकों के भक्षक बन दुश्मन देश से हाथ मिलाते हो क्यूँ जन्नत सी धरती पर अपनी काँटों की पौध उगाते हो संग कौन खड़ा होता विपदाओं में जब भी तुम घिरते हो  किस आजादी की मांगे कर दिन-रात उत्पात मचातें हो , ओ वादी के भोले नादानों कह दो अपने सरगनाओं को हमें नहीं जेहादी बनना दो टूक जवाब दो आक़ाओं को हमें तामिल हासिल कर नबील बानी जैसा टॉपर बनना हमें हुर्रियत जैसे भड़काने वाले ...

'' क्रन्तिकारी कविता '' शत-शत नमन तुम्हें महानायकों

क्रन्तिकारी कविता  शत-शत नमन तुम्हें महानायकों ये वानगी तो एक चेतावनी थी सिंधु जल पर जल्द फैसला लेंगे हम , दिल आज ख़ुशी से पागल है मन रही देश में गली-गली दीवाली   शहर-नगर फूटे धांय-धांय पटाखे मिष्ठानों से घर-घर सज गई थाली , इंतक़ाम ले लिया उरी की घटना ने मातमी चेहरों पर फैली ख़ुशहाली बहादुरों ने ऐसा साहसी रंग बिखेरा अबीर गुलाल उड़ा होली पर्व मना ली , शत-शत नमन तुम्हें महानायकों रच दी एल ओ सी पे नई कहानी प्रण किया था खाकर माँ की कसम सेनाओं की व्यर्थ ना जाने दी क़ुरबानी , तेवर ने एक-एक शहादत के बदले  दस-दस जां लेने की बात कही थी बता दो नहीं पूरा हुआ मिशन अभी पीठ पर हमने घात की वार सही थी आज कलेज़े को मिली है ठण्डक उरी का मुँहतोड़ जवाब दे देने पर घर में घुस वीरों ने जो अंजाम दिया अब नहीं मलाल सुपुत्रों के खोने पर तेरे शौर्य का अद्द्भुत परचम देख हल्दीघाटी का भी सीना फूल गया परमाणु बमो की धमकी देने वाला शिकश्त खा लाशें गिनना ...

'' क्रन्तिकारी कविता '' शमशीरें मचल रही हैं चोलों में

उरी हमले पर मेरी लेखनी द्वारा बिफ़रती हुई यह दूसरी कविता है ,उरी के शहीदों को समर्पित मेरी इस वीर रस की कविता की एक वानगी --- शमशीरें मचल रही हैं चोलों में प्रस्तावना से लेकर उपसंहार तक ऐ पाकिस्तान तेरी बर्बादी का पटकथा,कहानी लिख ली भूमिका ध्वस्त करना ढाँचा तेरी आबादी का ,   कितनी बार फेंकी है तूने लुत्ती हमारे अमन चैन के उपवन  में कितनी बार तूने भड़काए शोले हमारे जन-मन के शान्त सदन में , विकराल हवा संग मिल चिन्गारी तेरी चमड़ी पर ऐसा क़हर ढहाएगी अब अंगारों को चैन तभी मिलेगा,जब  नमक-मिर्च का खाल पे छौंङ्क लगाएगी , अनगिनत नासूर दिए हैं तुमने अब ये उफान नहीं है रुकने वाला लालकिले की रणभेरी ने हुंहकार कर  अब खोल दिया है चुप का ताला  , दरियायें भी अब समंदर बन कर व्याकुल हैं पाक तेरी तबाही को आँसुओं की छछनाईं नदियां आकुल हैं तेरी भीषण बरबादी को , क्यों तेरी अम्मियाँ बस पैदा करतीं तुझे आतंक,ज़िहाद में झोंकने को क्यों शिक्षा,संस्कार,चलन को देतीं चोला आत्मघाती,फ़िदाईन का...

'' क्रन्तिकारी कविता ' रण में विजय केतु फहराने पर

'' क्रन्तिकारी कविता ' रण में विजय केतु फहराने पर ये आक्रोश भरे शब्द लिखे हैं आँख के पानी से रोष है उड़ी में हुए अट्ठारह वीर जवानों की कुर्बानी से , रण हुंकार से भरी शेरों की शमशीरें दहक रही हैं बिफ़र रहीं तलवारें भी भुजायें-भुजायें फड़क रही हैं हर वजूद के रक़्त प्रवाह से सिंह सी गर्जनायें भड़क रही है विकराल तूफान की लहरें  पाक तुझे लीलने के लिए ललक रही हैं हम आस्मा को धरा पर झुका लेने की ताक़त रखते हैं तोड़ पर्वतों का गुमां गंगा बहा लेने की हिमाक़त रखते हैं हमारी एक ही हुंकार जला के ख़ाक कर देगी पाकिस्तान को हमारे हिन्दुस्तानी स्वेद में दुनिया बहा ले जाने का दुःसाहस रखते हैं माँ मलिन मन मत करना वीर पूत के शीश कटाने पर गर्व से सीना तान के रखना रण में विजय केतु फहराने पर धरा का शीश नहीं झुकने देंगे अरि भी नत मस्तक करेगा अब रण बांकुरों के कर में  देख खंग   माँ देखना विश्व भी काँप उठेगा अब बांध शहादत का सेहरा माँ ग़र वीरगति भी हो जाये मातृभूमि की रक्षा ख़ातिर माँ मेरा नाम अमर ग़र हो जाये धन्य मानूँगा ये जीवन,धरती ऋण से प्राण उऋण ग़र हो जाए सौभाग्यशाली वो दिन...

'' देश भक्ति कविता '' घटा भी बरसी ऐसे आज धाड़-धाड़ कर

'' देश भक्ति कविता ''   घटा भी बरसी ऐसे आज धाड़-धाड़ कर  चिता पर दुलारों तेरी श्मशान रो रहा है कैसे करें अगन हवाले जहान रो रहा है धरा रो रही है नीला आसमान रो रहा है जनाज़े पर तिरंगे का अपमान रो रहा है , भृकुटी तनी,आपा खोया,त्योरियां चढ़ीं   लाल किले के बुर्ज़ ने तोड़ दिया संयम छल-छद्म के बदले मन भड़की चिन्गारी                     नरम रवैयों का सब्र ने खोल दिया बंधन,  मौत का पाई-पाई कर्ज़ चुकाने को हम माँ की सौगंध वर्दी तन पे सजा लिये हैं कर अश्त्र ले दस-दस लाशें बिछाने का सरहद पार जाने का वीणा उठा लिये हैं , ललकार रहीं उठती चिताओं से लपटें पाकिस्तान को नेस्तनाबूंद कर देने को हर आंसू हर आह से भड़क रहा शोला ब्याज सहित जख़म वसूल कर लेने को , दग्ध चीत्कार पर माँ-बहनों परिजनों के पाषाण हृदय के भी आँसू निर्बाध उमड़े धाड़-धाड़ कर बरसी घटा भी आज ऐसे  जब सुहागन के माँग की लालिमा उजड़े , तिरं...

पागलों का जमावड़ा

उरी में हुए आतंकी हमले और वीरों की शहादत पर लालू यादव के ये श्रद्धांजलि के शब्द हैं ,मोदी जी पर कटाक्ष कि ३६ इंच का सीना सिकुड़ गया ,इस उजड्ड गंवार की अक्ल को कौन ठिकाने लगाएगा सारा देश शोक संतप्त है ,इस शोक की घड़ी में तो सारे देशवासियों को घर के अन्तर्कलह को किनारे कर भारतीय एकता का सन्देश देना चाहिए ,लालू यादव के इस कथ्य पर भी बवाल मचाना चाहिए ,किस सरकार के कार्यकाल में इस तरह के घातक हमले नहीं हुए ,आशंका तो हो रही कहीं सरकार को बदनाम करने के लिए राजगद्दी की लालसा के लिए कहीं इन विरोधी तत्वों का हाथ तो नहीं ,यदि आतंकी हमलों पर, देश पर मंडराते हुए खतरों पर राजनितिक पार्टियां ऐसी बयानबाजी करती हैं तो पूरे देश से मेरा अनुरोध है की बेहूदे जुबानी हमलों पर उन्हें भी सबक अवश्य सिखाएं,धर्म,जाति-पांति को परे पखकर ऐसे हालात पर एक शब्द भी बेतुका बोलने वाले की जीभ काटकर उसके हाथों में रख देना होगा ,घर के बहरूपियों की उलटीसीधी ,अंट-शंट बयानबाजी से दुश्मनों को हिम्मत मिलती है ,कहाँ देशवासियों, जवानों का हौसला बढ़ाना चाहिए और कहाँ ताना और छींटाकसी केर...

रत्ती भर परवाह नहीं ,

उरी कश्मीर में अपने १७ जवानों की शहादत और घायल हुए जवानों की खबर से आत्मा दुःख से चीत्कार रही है ,आक्रोश इतना कि चुन-चुन-कर गिन-गिन कर एक-एक को मन हो रहा है चुटकी से मसल-मसल कर इनकी जन्नत जाने वाली अछूत शरीर को आग लगाकर उस पर मैला डाल दें , जवानों के माँ,बाप,बहन,पत्नी बेटी का क्या हाल हो रहा होगा ,हम सिर्फ प्रतिक्रियाएं व्यक्त करते हैं लिख,बोलकर भड़ास निकालते हैं फिर कुछ दिन बाद ऐसा दर्द भूल जाते हैं लेकिन फिर ऐसी ही वारदात दुहराई जाती है ,जहर का घूंट कब तक पीते रहेंगे हिंदुस्तान का वह तबका कहाँ गया जो हमेशा विरोधाभाषी बातें करता रहता है कहाँ गए ओवैसी और कश्मीर के अलगाववादी नेता वो विरोधी पार्टियां जिनकी लंबी-लंबी जुबानें चार हाथ बाहार निकलकर भड़काने वाली बातें करती हैं ,यदि आज अभी कोई कारगर कदम उठाया जाय तो चों-चों करने के लिए सभी पार्टियां दुश्मनों की तरह एक मंच पर आ जाते हैं मोदी जी के ख़िलाफ़ आवाज उठाने  के लिए ,यदि सभी हिंदुस्तानी एक मत से ऐसी घटनाओं के निराकरण के लिए आवाज बुलंद करें सभी अराजक तन्तुओं के आचरण का बहिष्कार करें...

नई स्फूर्ति की मिश्री घोल रही है

'' नई स्फूर्ति की मिश्री घोल रही है '' सोने वालों उठो नींद से आँखें खोलो आलस्य उबासी छोड़ो मुँह तो धो लो , अँधेरे की तिजोरी अलकें खोलीं देखो सप्तरंगों की खींच रंगोली अम्बर ने बिखरा दी रोली खेत चले किसान ले बैलों की टोली बूढ़ी अम्मा मक्ख़न बिलोल रही है , धरा पे बिखरी सूरज की लाली मन आभा मण्डल से हुआ विभोर गहमा-गहमी हुई प्रारम्भ प्रात की गह-गह फैली कृत्रिम छटा चहुँओर हरियर दूब पर ओस ठिठोल रही है , हिम शिखर की चोटी चूम-चूम स्वर्णिम ऊषा पट खोल रही है प्रात की पहली रुपहली किरण सिन्दूरी घूँघट के ओट से बोल रही है नई स्फूर्ति की मिश्री घोल रही है मंगल गीत सुना रहे हैं सुर में दहियल,बुलबुल,कोयल,कलहांस गुलमुहर पर छितरी लाली पीली ओढ़नी ओढ़े अमलतास चिड़ियाँ चह-चह किल्लोल रही हैं , दिन चढ़ आया रवि लाया देखो नव जोश उजास की भरी टोकरी तिमिर चीर फूट रहा उजाला पुरईनियां खिल गईं ताल,पोखरी पुरवईया झूर-झूर डोल रही है , दिन की सारी ...

देखो अश्रु की धारा

देखो अश्रु की धारा दुश्मन पतित बाज ना आएगा कभी भी अपनी बेशर्मी से जला दो शत्रुओं की लंका लहू की ख़ौलती गर्मी से , इतिहास के पन्नों में होगी दर्ज़ वीरों तुम्हारे शौर्य की गाथा चुका दो क़र्ज़ निभा कर फ़र्ज चूमें माँ भारती गर्व से माथा , इक बलिदानी की विधवा तुझसे ही न्याय है मांगे शहीदों के यतीम बच्चे भी तुझसे ही इंसाफ़ हैं मांगे , उन माँ-बाप के आँखों में देखो अश्रु की बहती अविरल धारा जिनने अपने ज़िगर का टुकड़ा वतन की आन-बान पर वारा , कोई बांका वार ना जाये खाली  रायफ़ल की दुनालों का हो तुम तो बहादुर वीर सिपाही मिटा दो नाम नक़्क़ालों का , गिन-गिन शहादतों का तुम्हें अब   वीरों ज़ल्द इंतक़ाम लेना होगा  तुम्हें क़सम भारत माता की बैरियों का सर क़त्लेआम करना होगा , घर के गद्दारों का भी है ख़तरा कहीं कम ना आंकना शमशीरों पैलटगन भी संभालन कर रखना तुम अपनी भी सुरक्षा में शूरवीरों , हायतौबा मच जाये भले ही  इसका ग़म नहीं है करना क़ौम के संग तुम्हारे सभी लोग बांध लो गिरह नहीं है डरना ।           ...

फट गई ऐसा ब्रह्मास्त्र चलाया कि

   फट गई ऐसा ब्रह्मास्त्र चलाया कि मोदी कर दिए ऐसी कारगुजारी ,बंध गई घिग्घी गिद्धों की सारी होशो-हवास उड़ा,उड़ी है नींद बिचारी ,फट गई ऐसा ब्रह्मास्त्र चलाया कि , प्राचीर से लाल किले ने फोड़ दी है चिंगारी पाकिस्तान में धुवां उठ रहा सुलग-सुलग जल रहा नर संहारी पड़ गया उल्टा पासा भारी ,ईंट को मार पत्थर ने दी करारी बंध गई घिग्घी गिद्धों की सारी ,फट गई ऐसा ब्रह्मास्त्र चलाया कि , मोदी कर दिए ऐसी कारगुजारी ,बंध गई घिग्घी गिद्धों की सारी होशो-हवास उड़ा,उड़ी है नींद बिचारी ,फट गई ऐसा ब्रह्मास्त्र चलाया कि , दिखा आईना गिलगित,बल्टिस्तान का ठोंका '' पीओके '' पे दावा  ज़ालिमों हमने सहा है घाव बहुत फूट रहा भीतर का लावा खुद के ही जाल में फंसा मदारी ,आगे देखो क्या सुलूक हमारी  बंध गई घिग्घी गिद्धों की सारी ,फट गई ऐसा ब्रह्मास्त्र चलाया कि , मोदी कर दिए ऐसी कारगुजारी , बंध गई घिग्घी गिद्धों की सारी होशो-हवास उड़ा,उड़ी है नींद बिचारी ,फट...

अभिव्यक्ति की आजादी है इसीलिए अभिव्यक्त किया है

अभिव्यक्ति की आजादी है  इसीलिए अभिव्यक्त किया  हम ध्वज चाँद पर फहरायेंगे क्षितिज का चाँद हमारा है देखो तीन रंगों के बीच चक्र अभिप्राय बड़ा ही प्यारा है , तूं झंडे पर चित्र बना चाँद का,ध्यान रहे आधा अधूरा हो आधे चाँद के बीचो-बीच में बस एक ही टंका सितारा हो  , पवन नीर सब अपना सूरज पर भी अधिकार हमारा है आस्मा सहित चाँद के जुगनूँ तारे,सबपर राज हमारा है , जल ज़मज़म का पीकर भी तेरे मन का सोता ख़ारा है यहाँ हर मन के सोते से फूटती गंगा की पावन धारा है , अपराध की फ़ेहरिस्तों से गदगद होता ख़ुदा तुम्हारा है सद्गगुण,सुमार्ग,सत्कर्म से अभिभूत होता नाथ हमारा है ।                                                  शैल सिंह 

अपनों से ही ठोकर खाई

अपनों से ही ठोकर खाई यह कविता उनके लिए जो परिश्रमी मेधावी होने के बावजूद भी लोगों के अन्याय का शिकार होते है ,फिर भी हारते टूटते नहीं ,गिर के फिर संभल जाते है अगली लड़ाई के लिये और पुनः संकल्प की टहनियों को संजीवनी दे पुनर्जीवित करते हैं मंजिल तक पहुँचने के हर प्रयास को ,बार-बार परास्त हो साहस को और शक्तिशाली बना विरोधियों को मजबूर कर देते हैं सत्य की ठोस जमीं पर उतरने को। संकटों में घिरकर भी लक्ष्य को सकारात्मक बना लेते हैं सामर्थ्यवान की गलत नीति को धराशाई कर देते हैं और सत्य की जीत पर वो कभी-कभी छलांगे भी लगा लेते हैं,जो भी कुर्सी का गलत उपयोग करते हैं उनके लिए भी मेरी ये कविता है ,किसी के पक्षपात के लिए किसी योग्य का अहित नहीं करना चाहिए । तूं भी कश्ती पे सवार है कश्ती मेरी डूबाने वाला तूं भी धरती पे इंसान है भगवान नहीं कहलाने वाला डर तूफ़ां की मौन हलचल से ज्वार उफ़ान पे आने वाला ईश्वर की लाठी बेआवाज़ सुन वही तुझे तेरी औक़ात बताने वाला , इतना गुरूर हस्ती पे हस्ती ही सबक सिखाएगी जिस चाबुक से किया वार अक़्...

फर्ज बताने हम निकलें हैं

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कारगिल दिवस पर  कारगिल दिवस पर  अखण्ड भारत का अखण्ड दीप जलाने हम निकले हैं करें हिन्द पर प्राणउत्सर्ग अलख जगाने हम निकले हैं ज्योति से ज्योति बिखेरने की मुहीम पर हम निकले हैं साथ कारवां का निभाने की अपील पर हम निकले हैं जागो भारतवंशी एकता का हार पिराने हम निकले हैं शहादतों का कर्ज उतारना फर्ज बताने हम निकलें हैं ग़द्दारों की विकृत ज़मीर को धिक्कारने हम निकले हैं रचनाधर्मिता की मशाल से तुम्हें जगाने हम निकले हैं                                                   शैल सिंह 

क्या भाव हृदय के जाने

क्या भाव हृदय के जाने  तूं पत्थर तेरा दिल पत्थर क्या भाव हृदय के जाने क्यों लहूलुहान विश्वास करे कभी आस्था नहीं पहचाने मनकों की माला फेरूँ क्या कैसे नाम रटूं तेरा जिह्वा पर क्या पुष्पों का हार चढाऊँ और क्या-क्या वारूं दीया पर सच्चरित्रता,सत्कर्म,ईमान,कर्मठता का ग़र तुझे फल देना घातक इतना तो फिर सन्मार्ग चलें क्यों तेरे लिए    जियें चल कुमार्ग पर जीवन अपना कितना धैर्य का लेगा इम्तिहान तूं कितनी बार करेगा नाइंसाफ़ी  भक्ति-भावना छोड़ दी अब तो करले जितनी करनी वादाख़िलाफ़ी  तेरी दिव्य दृष्टि किस काम की जब उचित-अनुचित अनर्थ ना देख सके तूं पाखंडी पाषाण की निष्ठुर मूरत होता कितना अन्याय ना रोक सके ग़र तेरी लाठी में दम है इतना तो कर वार मेरे दुश्मन पर जिसने इतना गहरा घाव दिया कर बेआवाज़ प्रहार उस तन पर।                       शैल सिंह

गुनहगार हूँ मगर बेकसूर हूँ

गुनहगार हूँ मगर बेकसूर हूँ   ज़माने की निग़ाहों का तीर सह सकी ना मजबूर इस क़दर हुई कर बैठी बेवफ़ाई कभी आह भरती हूँ  कभी रोती बहुत हूँ दर्द रात भर पिघलता  जाने कैसी बुत हूँ अश्क़ ग़म के खातों में कसकती तन्हाई मजबूर इस कदर हुई कर बैठी बेवफ़ाई कभी फूल बन के तुम आते हो ख़्वाबों में कभी पलकों पर आ  बह जाते सैलाबों में क्यूँ गुजरे ज़माने की महका जाते पुरवाई मजबूर इस कदर हुई  कर बैठी बेवफ़ाई , अपनी ज़िन्दगी अपनी किस्मत ना बस में भला कैसे हम निभाते वफ़ादारी की रस्में जिधर फेरती निग़ाह दिखती तेरी परछाई मजबूर इस कदर  हुई कर बैठी बेवफ़ाई , तिल-तिल कर मरती हूँ दिल की तड़प से यह शमां जलती देखो ज़िस्म की दहक से क़समें वादों का जनाज़ा क्या गाये रूबाई मजबूर इस कदर  हुई कर बैठी बेवफ़ाई बेग़ैरत मोहब्बत ना मेरे हमदम समझना खुदा की कसम मुझको बेवफ़ा न कहना बेपनाह मोहब्बत  की तुम्हें दे रही  दुहाई मजबूर इस कदर  हुई कर ...

हम ऐसी जमीं के जांबाज सिपाही

                    हम ऐसी जमीं के जांबाज सिपाही  कश्मीर तेरी प्यारी बहन है क्या जो ससुराल से विदा कराकर ले जाएगा जीतनी बार भेजेगा लावलश्कर कंहार लाशों का ढेर शानों पे ले जायेगा आ जा प्यारे तेरी आवभगत के लिए बेताब यहाँ गोले बारूद बरसने को सीमा पे तैनात तेरे जीजाओं की बन्दूक भरी स्वागत में आग उगलने को इत्ता वैराग भी ठीक नहीं पागलों अब कश्मीर राग अलापना दो भी छोड़ भीतर से खोखला है तूं कितना करना है तो कर भारत की प्रगति से होड़ अभी तो देखी तुमने केवल हमारी शराफ़त ग़र अपने पर हम आ जायेंगे अभी वक़्त है चेत ले वरना तेरे घर में घुस ऐसी कहर क़यामत का ढाएंगे इक-इक को चुन-चुन कर माँ की कसम कश्मीर का भैरवी राग सुनाएंगे जो दहशतगर्दी फैला रखी भारत की जमीं पर उससे तेरा मुल्क़ जलाएंगे पहले देख तूं अपने वतन की जर्जर हालत जो माँ तेरी,उस पे तरस तूं खा मत आँख उठाकर देख पावन धरा मेरी छिछोरेपन से क...

मत करो न साधना घायल मेरी

मंदिर-मंदिर चौखट-चौखट दीया बाल कर रही याचना नैवेद्य पुष्प की थाल सजाये घण्टी बजा कर रही प्रार्थना , मन्दिर के परमपूज्य पुजारी अर्जी देकर कह दो शिव से भजन,कीर्तन में लीन निमग्न कर जोड़े बैठी कबसे दर पे , मन तेरा द्रवित नहीं है होता  क्यों देख जगत की पीर प्रभु हहाकार रुदन,चीत्कार नहीं क्यों देता सीना तेरा चिर प्रभु , मांग अमन की भीख विकल क्या ऐसा अपराध किया मैंने सर्वत्र विराजमान तूं दयानिधे नहीं देखता क्यों क़हर घिनौने , तुझे रिझाने को निष्ठुर भगवन जाने कितने उपक्रम कर डाले नयनों से घटा बरसा-बरसाकर अगणित  बार फेरे हैं मैंने माले , क्या तुझे समर्पित और करूँ मैं तेरा ये गर्वित रूप पिघलाने को रीती गागर आँचल सूखा सावन सिवा श्रद्धा ना कुछ बरसाने को , कहो ना चाँद से शीतल बनकर दहक मिटा दे तपती धरती का मटमैली ना हो रजनी की चादर  ना तृष्णा,मुस्कान हरे जगती का , जलती सांसों पर बोल गीतों के सुमधुर स्वर ताल में कैस...

आखिर लिखूं तो क्या लिखूं

आखिर लिखूं तो क्या लिखूं मुरझा से गए हैं अल्फ़ाज मेरे सुख गई है मन की तलहटी पैठ इनमें ढूँढूँ तो क्या ढूँढूँ  कुछ आता नहीं दिमाग में आखिर लिखूँ तो क्या लिखूँ , ताजी खुश्बुओं का झोंका कब आकर चला गया हुनर आशिकी का मेरे कहाँ लेकर चला गया सदा दूं तो किसको दूं कुछ आता नहीं दिमाग में आखिर लिखूं तो क्या लिखूं , अब न हाथ में आती कलम ले भावों का सुन्दर समन्वय ना ही दर्द देते शब्द कुछ करूँ कागजों पे कोई बवंडर  रिक्तता में भरूं तो क्या भरूं कुछ आता नहीं दिमाग में आखिर लिखूं तो क्या लिखूं , ऐसी तो न थी हालत कभी कैसे तबियत बिगड़ गई ऐसा हुआ क्या माज़रा फन से रंगत उतर गई बैठी करूँ तो क्या करूँ कुछ आता नहीं दिमाग में आखिर लिखूं तो क्या लिखूं , ना वो मधुर पल-छिन रहे ना सुहानी गुनगुनाती रात ना उमड़-घुमड़ सौहार्द्र बरसे ना स्वच्छन्द गूंजे अट्टहास वक़्त से कहूँ तो क्या कहूँ  कुछ आता नहीं दिमाग में आखिर लिखूं तो क्या लिखूं ।                       शै...

द्रव तेरी आँखों का क्यों सूखा है रे जालिम

द्रव तेरी आँखों का क्यों सूखा है रे ज़ालिम बर्बर आतंकों से दहला हुआ है विश्व भी ख़ौफनाक सायों में गुजरे सहमी ज़िदगी दहशतगर्दों के इरादों की अज़ीब दास्ताँ इंसानियत को मार जी रहे कैसी ज़िदगी    बनके अमानुष गिराते रोज ही क्रूर ग़ाज  झुलसा रहे निर्दयता से दुनियावी ज़िदगी  मौत का बरपा क़हर पसरा हुआ मातम  सांसों के अहसानों पर जी रहे हैं ज़िदगी  देख यह मन्जर मेरा होता है दिल घायल  पी-पी के घूँट ज़हर का जी रहे हैं ज़िदगी , यह कैसी सनक है धुन,उपद्रव किसलिए ऐसे खिलवाड़ से करोगे कबतक दरिंदगी ग़र न ज़मीर जागा न फूटा सोता स्नेह का  इक दिन तुम्हें भी लील लेगी तेरी दरिंदगी , हाय तुम्हारी हैवानियत को मैं क्या नाम दूँ  जन्नतेहूर की ख़ाहिश बनाई सस्ती ज़िदगी   द्रव तेरी आँखों का क्यों सूखा है रे ज़ालिम तेरी बेरहमी बेगुनाहों की ले रही है ज़िदगी ,  जिस ख़ुदा वास्त...

गुलाब से सीख

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गुलाब से सीख  तेरी सुवासित कोमल पंखुड़ियाँ पर काँटों भरी टहनियाँ क्यों हैं     ऐ गुलाब बता तेरे ताबों के संग शूलों की इतनी लड़ियाँ क्यों हैं '       इन शूलों के भी बीच अकड़कर कैसे सुर्ख सिंगार कर मुस्काता है दुनिया को जरा यह रहस्य बता दे शूलों में घिर कैसे सुगंध फैलाता है  ।                                  शैल सिंह

अभी करना काम बहुत है बाकी

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अभी करना काम बहुत है बाकी अभी तो पग हैं धरे डगर पे चलना दूर बहुत है बाकी सफ़र अभी तो शुरू हुआ है तय करना सफ़र बहुत है बाकी अल्प समय में कर दिया बहुत कुछ अभी करना काम बहुत है बाकी पल-पल का हिसाब अभी क्या दूँ अभी हल करना काम बहुत है बाकी सबका साथ सबका विकास हो बस हाथ में हाथ मिलाना साथी घर में रोशनी की बहुत जरुरत तुम सब बनो दीया जलूं मैं बन बाती अभी विश्व फ़लक पर नाम है चमका अभी भारत को स्वर्ग बनाना है बाकी                           शैल सिंह

आँखें खोलो पथभ्रमितों

आँखें खोलो पथभ्रमितों  सीमाओं पर डटे सिपाही कभी भेदभाव नहीं करते अपना जान जोख़िम में डाल महफूज़ हमें हैं रखते मौसम की परवाह न करते धूप,ताप गलन हैं सहते माँ रज का कण शीश लगा,हमवतन लिए हैं लड़ते जो कश्मीर का सुर अलापे जुबां काट रखें हाथों में कभी ना आना भाई मेरे कैसी भी बहकाई बातों में राम ख़ुदा में बांटा किसने क्यों नहीं समझ में आता क्यूँ नहीं इस माँ के लिए हृदय में कोई भाव जगाता जो माँ आँचल में आत्मसात की सदा तुम्हारा जीवन उस माँ के लिए भरा क्यों मन में बदबू सा है सीलन आँखें खोलो पथभ्रमितों दूजी 'जहाँ' की देखो तस्वीर जहाँ इन्सानों का मोल नहीं खींची हुई देखो शमशीर हिन्दू,मुस्लिम,सिख,ईसाई का देश पुरातन ये भारत यहाँ सब धर्मों का होता पूजन देश सनातन ये भारत मत करो बग़ावत माँ से,नहीं जहाँ में कोई ऐसा देश जहाँ स्वर्ग उतर स्वयं हिन्द का चूमा करता है केश भेदभाव,मतभेद मिटा भाईचारे की अलख़ जगाओ हम हिंदुस्तानी एक कुटुम्ब हैं दहशत मत फैलाओ ।       ...

किसने किस्तों में लूटा है देश सबको है पता

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           " नमो-नमो को समर्पित " किसने किस्तों में है लूटा देश सबको है पता [ १ ] ऐसा कोहिनूर हीरा कभी ना मिलेगा अरे देश वालों क़दर करना जानों सत्ता की लोलुपता में मसीहा ना नकारो महान इस विभूति की शिखा तो पहचानो अंतर्मन के द्वार खोलो और देखो उजाला क्यों तमस का आँखों पर परदा है डाला जिसने विश्व की जुबान पर हिंदी हिंदुस्तान का फूंक दिया है मन्त्र अपने गीता और पुराण का । [ २ ] सियासत के दांव-पेंच से अब उतर रहा नशा बदल रहा हमारा देश और सुधर रही दशा गा रहीं फिजाएं मुस्करा रही दिशा छंटी मन पर छाई बदरी,दीप्त हो रही निशा बहारों को भी है भा गई खिज़ां की हर अदा नदी,बावड़ी,तालाब हुईं कंवल-कंवल फ़िदा किसने किस्तों में है लूटा देश सबको है पता किसके चमके हुनर पर विश्व भी है दे रहा सदा ।                                    शैल सिंह

नमन तुम्हें नन्हें ज्योतिर्मय दीपक

नमन तुम्हें नन्हें ज्योतिर्मय दीपक                                                                                                                        निर्जन रजनी का तूं पथप्रदीप है अन्तर्मन आलोकित करने वाला जगमगाता दीप तूं पर्व पुनीत है चाहे जितने जुगनूँ तारे चमकें बजता हो आसमां में डंका चाँद का पर दीपक की परिभाषा अभिन्न तमकारा चीर सुख देता आनंद का हरने को तिमिर का हर पीर तुम्हें जलना दीपक तुम्हें निरन्तर लिखा बदा में मालिक ने तेरे नहीं कभी भी सुस्ताना पल भर , तुम द्वैत-अद्वैत के मिलन के दीपक तु...

देशद्रोहियों की मति गई है मारी का

देशद्रोहियों की मति गई है मारी का जहाँ सुबह होती अजान से कान गूंजे हनुमान चालीसा जिस धरती पे राम-रहीम बसते गुरु गोविन्द और ईसा जहाँ हिन्दू मुस्लिम सिख ईसाई में भाई-भाई का नाता जहाँ की पवित्र आयतें बाईबिल ग्रन्थ कुरान और गीता , हम करते हैं नाज़ जिस वतन की नीर,समीर माटी पर हम करते हैं नाज़ जिस चमन की खुशबूदार घाटी पर जिसकी आन वास्ते शहीद हुए न जाने कितने नौजवाँ उस मुल्क़ के मुखालफ़त गद्दार हुए बदजात बद्जुबां , पतित पावनी धरा पर भूचाल मचाया उपद्रवी तत्वों ने अभिव्यक्ति की आज़ादी में पाजी अक़्ल लगी सनकने भारत के टुकड़े होंगे कहते हैं कश्मीर नहीं भारत का बेलगाम नामुराद देशद्रोहियों की मति गई है मारी का ,                                               इक दिन बिखर जायेंगे अभिव्यक्ति की आज़ादी वाले दहर में देखना टूटे हुए जंजीर की कड़ियों की तरह उठेंगी दश्त में घृणा भरी निग़ाहें ब...

आतंक की घृणित विभीषिका पर मेरा अंतर्द्वंद

आतंक की घृणित विभीषिका पर मेरा अंतर्द्वंद  नित देख जगत का आहत दर्पण पन्नों पर मन का दर्द उगलतीं हूँ अब जाने कब होगा जग प्रफुल्ल  सोच कविता में मर्म विलखती हूँ , काश करतीं व्यथित शोहदों को आतंक की चरम घृणित क्रीड़ाएं कोई मुक्तिदूत बनकर आ जाता हर लेता जग की क्रन्दित पीड़ाएँ , कभी ग़र घोर निराशा के क्षण में कहीं से छुप झांक पुरनिमा जाती पुनः अगले पल कुछ घट जाता रे जैसे ही सुख भर पलकें झपकाती , जब-जब हँस उषा की लाली देखा कलह की सुख पर चल गई आरी फिर काली निशा हो गई डरावनी सुनकर कुत्सित षड्यंत्र की क्यारी , भाटे जैसी उठती हिलोर हृदय में व्यूह तोड़  लहरों में बह जाने को जग का दुर्दिन हश्र देख मचलता विवश कंगन कटार बन जाने को , रुख रहेगा अलग-थलग भावों का  ग़र आपस में ही लड़ते रह जायेंगे जो भी आदि बची जी दीन दशा में विष सुधा विद्वेष कलुष कर जायेंगे , सुरभित जीवन में मची कोलाहल सर्वत्र चीत्कार रहीं गलियाँ-गलियाँ भय ...

'' बहुत प्यारी हमको अपनी सरज़मीं ''

'' बहुत प्यारी हमको अपनी सरज़मीं  '' जाविदाँ ,जहाँ आफरीं हिन्द मेरा वतन जहाँगीर जाविदाँ मेरा ज़न्नत सा चमन नहीं ऐसा जहाँपनाह कहीं भी जहाँ में सारा जहाँआरा बाअदब करता नमन , जाके देखो जहांगिर्द नहीं कहीं पाओगे ऐसा जमील अौ जमाल है गुलशन मेरा ज़फ़ा जालसाजी छोड़ो ना गद्दारी करो जवान स्वालिह बनो मत किताली करो , आँखें दिखाने की जुर्रत ,जसारत करो ना वतन से मेरे जुलसाजी,गद्दारी करो पल में करेंगे जिलावतन सुनो काफिरों हम जाँनिसार वतन  पर सुनों जाहिलों , हम जाविरों को कभी माफ़ करते नहीं हम हैं कितने जलाली ये जरा जान लो हम हैं जाबांज जब्बार करने लेने वाले छोड़ो  जब्र जबरन कहा जरा मान लो , जम्हूरी सल्तनत नहीं हिन्द जैसी कहीं मेरे भारत माँ की जन्नत सी है सरजमीं जवाँ दौलत,जवाहरों का मेरा ये देश है जवांसाल,जवाँमर्दों का यहाँ समावेश है , जाविदाँ --शाश्वत ,अविनाशी जहाँआफरीं --संसार को रचने वाला जहाँगीर--चक्रवर्ती ,विश्वविजयी जहाँपनाह--संसार की सुरक्षा करने वा...

'' वर्तमान परिदृश्य पर मेरे विचार ''

                             '' वर्तमान परिदृश्य पर मेरे विचार ''              एक इंदिरागांधी थीं कि अपनी दूरदर्शिता से पाकिस्तान का विभाजन कर दो राष्ट्रों का निर्माण कर भारत को अक्षुण्ण बनाने में कोई कोर कसर नहीं छोड़ीं , मुझे तरस आता है राहुल गांधी की बुद्धि और विवेक पर जो इस देश को इस देश के लोगों को अभी तक नहीं समझ पाये और समझने का प्रयास भी नहीं कर रहे अपनी दादी का नाम तो भुनाते हैं पर उनके उसूलों,आदर्शों ,सिद्धांतों का अनुसरण नहीं करते ,जिस देश को हमारी महान नेता श्रीमती इंदिरागाँधी ने अपने खून पसीने से सींचा हो उसी दूरदर्शी महिला का अपना नाती इतना घृणित और राजनैतिक गुंडेपन का परिचय दे रहा हो और उस बहरूपिये का समर्थन कर रहा है जो ये कहता है कि रोहित वेमुला मेरा आदर्श है मैं उस मंदबुद्धि से ये पूछना चाहती हूँ कि हमारे संविधान में आत्महत्या का क्या स्थान है हमारे संविधान में आत्महत्या को एक जघन्य अपराध माना गया है अरे आत्महत्या ...

ऐसी गलती बार-बार करुँगी

मिस्टर कन्हैया जेल जाना तो तुम्हारे लिए वरदान सावित हो गया ,जे एन यू से बहुत सारे नेता निकले लेकिन उनमें से गिने-चुने लोगों को ही यह देश जान पाया और तुम तो जेल से बाहर आकर अच्छी खासी भीड़ जुटाकर अपनी धाक ज़माने में कामयाब हो गए । एस सी एस टी ओ बी सी का कार्ड खेलकर तथा रोहित वेमुला का नाम उछालकर जिस तरह से युवाओं को भरमाने की विसात बिछा रहे हो वह तुम्हारी राजनीतिक कूटनीति की एक चाल मात्र है इससे इतर कुछ भी नहीं । जब कि तुम भी अच्छी तरह जानते हो कि जैसे इस देश में आये दिन विक्षिप्त लोग ख़ुदकुशी ,आत्महत्या करते हैं ,वैसे ही एक केस रोहित वेमुला का भी है वैसे तो यह दुर्भाग्यपूर्ण है जो लोग अपनी समस्याओं से संघर्ष नहीं कर पाते वे इस तरह का कायरता पूर्ण कार्य अख्तियार कर लेते हैं।     कन्हैया तुम्हें भी अच्छी तरह पता होगा कि जिस नरेंद्र मोदी का आज तुम दहाड़कर मखौल उड़ा रहे हो इन  मानसिक दिवालियेपन वाली भीड़ों के समक्ष जिनका अपना कोई वजूद नहीं वरना सौ बार ये हुजूम सोचता कि कैसे देशद्रोही का हम जश्न मना रहे हैं और भाषण सुन र...

हमें रत्ती भर भी मंजूर नहीं कोई भारत माँ पर आँख उठाये

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हमें रत्ती भर भी मंजूर नहीं कोई भारत माँ पर आँख उठाये चाहे जितनी कर लो नारेबाज़ी कश्मीर नहीं हम देने वाले चाहे जीतनी चलो पैंतरेबाजी ये जागीर नहीं हम देने वाले हमें रत्ती भर भी मंजूर नहीं कोई भारत माँ पे आँख उठाये जिसे प्रिय है इतना पाकिस्तान जाके पाकिस्तान बस जाये , हमें नहीं ज़रुरत घाती गद्दारों,दुराचारी अलगाववादियों की कितने नमकहराम होते हैं हमारे ही टुकड़ों पर पलने वाले इन आस्तीन के साँपों को हमारा आदर,सत्कार नहीं भाता इनको चाहे जितना मक्खन दो होते मन के ये कपटी काले , हम नहीं कोई तमाशाई जो ख़ामोश अतिक्रमण इनका देखें ग़र हिंदुस्तान में इन्हें रहना है तो वन्दे मातरम कहना होगा उन्हें भी नहीं बख़्शना जिनकी सह पाकर मचा रहे बवण्डर इसी ज़मीं का गुण गाकर इन्हें हिन्द के लिए ही मरना होगा ।                                                           शैल सिंह

कितनी बार चली है सब्र पे आरी नहीं चैन से रहना है

कितनी बार चली है सब्र पे आरी नहीं चैन से रहना है                                                                                                                                                                                                                                              ...