नमन तुम्हें नन्हें ज्योतिर्मय दीपक
निर्जन रजनी का तूं पथप्रदीप हैअन्तर्मन आलोकित करने वाला
जगमगाता दीप तूं पर्व पुनीत है
चाहे जितने जुगनूँ तारे चमकें
बजता हो आसमां में डंका चाँद का
पर दीपक की परिभाषा अभिन्न
तमकारा चीर सुख देता आनंद का
हरने को तिमिर का हर पीर तुम्हें
जलना दीपक तुम्हें निरन्तर
लिखा बदा में मालिक ने तेरे
नहीं कभी भी सुस्ताना पल भर ,
लिखा बदा में मालिक ने तेरे
नहीं कभी भी सुस्ताना पल भर ,
तुम द्वैत-अद्वैत के मिलन के दीपक
तुम्हीं हो तम् के वाहक दीपक
तुम्हीं हो मन के साधक दीपक
नमन तुम्हें नन्हें ज्योतिर्मय दीपक ,
बिन तेरे हर अनुष्ठान अधूरा
तुम बिन हर विधि-विधान अधूरा
तुम ही धरती के अमरपुत्र हो
हे माटी के राजवंश तुम जीवनसूत्र हो ,
माटी गुण से जीवन परिपूरित तेरा
सारी रात तपा देह,नेह आलोक विखेरा
जग का तमस निगल सलोने तूने
दिया सूर्योउदय के हाथ सिन्होरा ।
शैल सिंह
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