रविवार, 10 जुलाई 2016

मत करो न साधना घायल मेरी

मंदिर-मंदिर चौखट-चौखट
दीया बाल कर रही याचना
नैवेद्य पुष्प की थाल सजाये
घण्टी बजा कर रही प्रार्थना ,

मन्दिर के परमपूज्य पुजारी
अर्जी देकर कह दो शिव से
भजन,कीर्तन में लीन निमग्न
कर जोड़े बैठी कबसे दर पे ,

मन तेरा द्रवित नहीं है होता 
क्यों देख जगत की पीर प्रभु
हहाकार रुदन,चीत्कार नहीं
क्यों देता सीना तेरा चिर प्रभु ,

मांग अमन की भीख विकल
क्या ऐसा अपराध किया मैंने
सर्वत्र विराजमान तूं दयानिधे
नहीं देखता क्यों क़हर घिनौने ,

तुझे रिझाने को निष्ठुर भगवन
जाने कितने उपक्रम कर डाले
नयनों से घटा बरसा-बरसाकर
अगणित  बार फेरे हैं मैंने माले ,

क्या तुझे समर्पित और करूँ मैं
तेरा ये गर्वित रूप पिघलाने को
रीती गागर आँचल सूखा सावन
सिवा श्रद्धा ना कुछ बरसाने को ,

कहो ना चाँद से शीतल बनकर
दहक मिटा दे तपती धरती का
मटमैली ना हो रजनी की चादर 
ना तृष्णा,मुस्कान हरे जगती का ,

जलती सांसों पर बोल गीतों के
सुमधुर स्वर ताल में कैसे लाऊँ
ऊषा बदली सभी सितारे बदले
उलझे हालात मैं कैसे सुलझाऊँ  ,

मत करो न साधना घायल मेरी
ना अवहेलना अर्चन-वन्दन की
भगवन तूं तो अगम-अगोचर है
हृदय पीर सुनो हम भक्तन की ।

                            शैल सिंह






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