क्या भाव हृदय के जाने

क्या भाव हृदय के जाने 


तूं पत्थर तेरा दिल पत्थर
क्या भाव हृदय के जाने
क्यों लहूलुहान विश्वास करे
कभी आस्था नहीं पहचाने

मनकों की माला फेरूँ क्या
कैसे नाम रटूं तेरा जिह्वा पर
क्या पुष्पों का हार चढाऊँ
और क्या-क्या वारूं दीया पर

सच्चरित्रता,सत्कर्म,ईमान,कर्मठता का
ग़र तुझे फल देना घातक इतना
तो फिर सन्मार्ग चलें क्यों तेरे लिए   
जियें चल कुमार्ग पर जीवन अपना

कितना धैर्य का लेगा इम्तिहान तूं
कितनी बार करेगा नाइंसाफ़ी 
भक्ति-भावना छोड़ दी अब तो
करले जितनी करनी वादाख़िलाफ़ी 

तेरी दिव्य दृष्टि किस काम की जब
उचित-अनुचित अनर्थ ना देख सके
तूं पाखंडी पाषाण की निष्ठुर मूरत
होता कितना अन्याय ना रोक सके

ग़र तेरी लाठी में दम है इतना
तो कर वार मेरे दुश्मन पर
जिसने इतना गहरा घाव दिया
कर बेआवाज़ प्रहार उस तन पर। 



                     शैल सिंह

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