सोमवार, 17 अक्तूबर 2016

तलाक और शरिया

तलाक तलाक तलाक के मसले को ना तो कानून सही कर सकता और ना ही शरीयत ,सिर्फ बहस और वाद प्रतिवाद के दौर में असली मुद्दा ही दबकर रह जायेगा । इस मसले का हल सारी मुस्लिम महिलाओं के हाथ में है यदि वह अपने साथ सदियों से हो रहे अन्याय के प्रति बगावत पर उत्तर जाएँ तो ,पर वो डरती हैं इस लड़ाई से कहीं अलग-थलग न पड़ जाएं ऐसी घड़ी में साथ देना होगा समाज को ,सभी वर्ग के लोगों को तथा हिंदुस्तान के सभी मानवीय संवेदनाओं को,मुस्लिम महिलाओं की सहनशक्ति ने ही बढ़ावा दिया मुस्लिम मर्दों को क्रूर से क्रूरतम अत्याचार और व्यवहार करने को सर से एड़ी तक बुर्का ,खुलकर साँस लेने की भी आजादी नहीं ,फैशन के अनुसार तथा बदलते हुए ज़माने साथ कितनों ने कुरीतियों को छोड़ ज़माने के साथ कदम मिलाया पर मुस्लिम धर्म में कोई बदलाव कभी नहीं आया न आएगा जब तक विचारों में आमूल परिवर्तन नहीं होगा जब तक सोच के फलक पर नई सोच हॉबी नहीं होगी ।  
                                                            shail singh  


                                                     

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