गुनहगार हूँ मगर बेकसूर हूँ
ज़माने की निग़ाहों का तीर सह सकी ना
मजबूर इस क़दर हुई कर बैठी बेवफ़ाई
मजबूर इस क़दर हुई कर बैठी बेवफ़ाई
कभी आह भरती हूँ कभी रोती बहुत हूँ
दर्द रात भर पिघलता जाने कैसी बुत हूँ
अश्क़ ग़म के खातों में कसकती तन्हाई
मजबूर इस कदर हुई कर बैठी बेवफ़ाई
दर्द रात भर पिघलता जाने कैसी बुत हूँ
अश्क़ ग़म के खातों में कसकती तन्हाई
मजबूर इस कदर हुई कर बैठी बेवफ़ाई
कभी फूल बन के तुम आते हो ख़्वाबों में
कभी पलकों पर आ बह जाते सैलाबों में
क्यूँ गुजरे ज़माने की महका जाते पुरवाई
मजबूर इस कदर हुई कर बैठी बेवफ़ाई ,
अपनी ज़िन्दगी अपनी किस्मत ना बस में
भला कैसे हम निभाते वफ़ादारी की रस्में
कभी पलकों पर आ बह जाते सैलाबों में
क्यूँ गुजरे ज़माने की महका जाते पुरवाई
मजबूर इस कदर हुई कर बैठी बेवफ़ाई ,
अपनी ज़िन्दगी अपनी किस्मत ना बस में
भला कैसे हम निभाते वफ़ादारी की रस्में
जिधर फेरती निग़ाह दिखती तेरी परछाई
मजबूर इस कदर हुई कर बैठी बेवफ़ाई ,
तिल-तिल कर मरती हूँ दिल की तड़प से
यह शमां जलती देखो ज़िस्म की दहक से
क़समें वादों का जनाज़ा क्या गाये रूबाई
मजबूर इस कदर हुई कर बैठी बेवफ़ाई
बेग़ैरत मोहब्बत ना मेरे हमदम समझना
खुदा की कसम मुझको बेवफ़ा न कहना
बेपनाह मोहब्बत की तुम्हें दे रही दुहाई
मजबूर इस कदर हुई कर बैठी बेवफ़ाई ,
तोहमत की बिजली न बेचारगी पे गिराना
जब भी दूँ सदा सुन फ़रिस्ता बनके आना
टूटा दिल का आबगीना फिर भरने रौनाई
मजबूर इस कदर हुई कर बैठी बेवफ़ाई
आबगीना --शीशा
शैल सिंह
मजबूर इस कदर हुई कर बैठी बेवफ़ाई ,
तिल-तिल कर मरती हूँ दिल की तड़प से
यह शमां जलती देखो ज़िस्म की दहक से
क़समें वादों का जनाज़ा क्या गाये रूबाई
मजबूर इस कदर हुई कर बैठी बेवफ़ाई
बेग़ैरत मोहब्बत ना मेरे हमदम समझना
खुदा की कसम मुझको बेवफ़ा न कहना
बेपनाह मोहब्बत की तुम्हें दे रही दुहाई
मजबूर इस कदर हुई कर बैठी बेवफ़ाई ,
तोहमत की बिजली न बेचारगी पे गिराना
जब भी दूँ सदा सुन फ़रिस्ता बनके आना
टूटा दिल का आबगीना फिर भरने रौनाई
मजबूर इस कदर हुई कर बैठी बेवफ़ाई
आबगीना --शीशा
शैल सिंह
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