रविवार, 1 जनवरी 2023

नव वर्ष पर कविता " समरसता की गागर छलके "

समरसता की गागर छलके

नव वर्ष लाये ऐसा उपहार 
हम सबके सपने हों साकार 
खुशियों की दे अनमोल सौगात 
कर दे राहों में फूलों की बरसात ,

महकी हुई मधुमासी हवाएं हों
सहकी हुई फिजाएं हों
परिन्दे चहकें बगिया गमके 
उल्लसित सभी दिशाएं हो ,

आत्मीयता से भरा हो मन 
सुखमय हो हर घर उपवन 
रिश्तों में हो मधुर मिठास 
नव वर्ष में हो अतिरिक्त खास ,

सर्वत्र उत्कर्ष,उल्लास,हर्ष हो 
ऐसा हम सभी का नया वर्ष हो
मर्यादा का कभी ना हो उलंघन 
हम सबके भावों में हो समर्पण ,

बीते वर्ष की खटास,वैमनस्यता
भूलें अनबन,उदासी,असफलता
लक्ष्यों को साकार करने हेतु 
करें संघर्ष हम मिले सफलता ,

ऊँच-नीच,भेदभाव मिटायें 
मन में कोमलता का भाव जगायें
नव वर्ष में नये कार्य सम्पन्न हों
नहीं कोई भूखा,गरीब विपन्न हो 

कोशिशों,हौसलों के पंख लगाकर
अपने अरमानों के उड़ान को,
उतार लाएं मेहनत,श्रम से हम
फलक से जमीं पर आसमान को ,

अतीत की अच्छी स्मृतियों से 
वर्तमान को बनायें सुन्दर और
समरसता की गागर छलके 
आये वर्ष भर अनेक अवसर और ,

दुख,दर्द,मुसीबत,बिमारी हेतु
करें प्रार्थना जड़ से हो नदारद 
सन दो हजार तेईस सभी को 
तहे दिल से बहुत-बहुत मुबारक ।

शैल सिंह
सर्वाधिकार सुरक्षित 



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