भजन
रटते-रटते नाम तेरा बीत गये दिन रैन
दरश दिखा दो केशव तरस रहे दो नैन ।
दृग के दीप जलाये बैठी हूँ तेरे दर पर
रोम-रोम में तुम ही बसे हो मेरे गिरिधर
सुध-बुध खोई छवि उर में बसा तिहारा
विरह में बावरी देह हुई है सूख छुहारा
पल-पल तेरी राह निहारूं जी है कुचैन
दरश दिखा दो केशव तरस रहे दो नैन ।
यमुना तट वृंदावन गोकुल की गलियाँ
गऊओं के गण कदम के तरू की छैंयाँ
कितना तड़पाओगे बोलो बंशी बजैया
गिरि कंदरा, वन-वन ढूंढा तुझे कन्हैया
एक झलक दिखला दो आँखें हैं बेचैन
दरश दिखा दो केशव तरस रहे दो नैन ।
चितचोर साँवरे की वो तिरछी चितवन
कैसे बिसराऊँ बसे जो मन के मधुबन
बजा के बाँसुरी रिझा के गीत सुना के
छोड़े सखा किस हाल में प्रीत लगा के
नहीं निभाये वादा कहकर गये जो बैन
दरश दिखा दो केशव तरस रहे दो नैन ।
उधो जा कहो संदेशा नन्दलला से मेरी
विरह तपस में झुलस रही है राधा तेरी
कह गये एक महिना बीत गये छै मास
कब आयेंगे कान्हा पूजेंगे मन के आस
प्रेम दीवानी बना गये कर के इतने सैन
दरश दिखा दो केशव तरस रहे दो नैन ।
कुचैन —बेचैन, गण--समूह,
बैन—वचन, सैन---ईशारा,
सर्वाधिकार सुरक्षित
शैल सिंह
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें