परिवार ही धन,दौलत—
जहाँ एकता होती सुमति होती है जिस घर में
वहीं देवी-देवताओं के होते वास देवालय तुल्य घर में
जहाँ कई रिश्तों से मिलकर बनता है एक सुखी परिवार
उसी घर की दहलीज़ पर ही होता सुखी जीवन का संसार ।
सभी के भाग्य में होता नहीं भरा-पूरा परिवार
जहाँ रिश्तों की होती कद्र जहाँ आपस में होता प्यार
ममता,डांट,दुलार,फटकार क़िस्मत में सबके कहाँ होता
परिवार वह शाख़ जिसके छांह में मिलता प्यार अपरम्पार ।
ये अनमोल रिश्ता बांध रखना प्रेम के धागे में
करना सबका स्वागत,सत्कार रह मर्यादा के दायरे में
दादा-दादी,नाना-नानी वटवृक्ष सा,परिवार के गुलदस्ते हैं
हो सौहार्द्र आपस में कटुक ना बात हो एक दूजे के बारे में ।
सुदृढ़ चारदीवारी है संयुक्त परिवार की माला
अपनेपन का उपवन भी प्रथम जीवन की पाठशाला
परिवार के पावन बगिया में रहतीं वृन्दावनि भी हरी-भरी
परिवार बिन जीवन विरान,लगे अमृत भी ज़हर का प्याला ।
ननहर-घर,पीहर-ससुराल रिश्तों की ईमारत हैं
क्यूँ सम्बन्ध बिखर रहे भहराकर वक़्त की शरारत है
प्रेम,व्यवहार,क्षमा के ईंट गारों से मरम्मत करें दरारों की
परिवार ही असली धन,दौलत ज़िन्दगी की यही वरासत है ।
वृन्दावनि‐-तुलसी, ननहर--ननिहाल
सर्वाधिकार
शैल सिंह
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