" वीर रस की कविता "
लहराता हुआ सागर कलकल फुफकारती नदी
गरजता हुआ हिमालय खड़ा ललकारती धरती
केसरिया करे सिंहनाद सरजमीं हुंकार है भरती
हो प्यारे देश पर परवानों कुर्बां शम्मा भी कहती ।
बारूदी शोलों सा फटो शूरवीरों राणा के संतान
तूफान भी ना रोक सके लो संकल्प मन में ठान
विनाश लीला कर विध्वंस करो पूरा पाकिस्तान
कि शौर्य का तुम्हारे करे श्रृंगार सारा हिन्दुस्तान ।
शहादतों का कर हिसाब क़ौम की आन बढ़ा दो
ध्वजा गर्ज करे शंखनाद सपूतों रणभेरी बजा दो
मातृभूमि के गौरव लिए हो ग़र गर्दन भी कटानी
हँसते-हँसते सूली चढ़ना माँ की उधारी उतारनी
वतन पर वार दो फौलादी ज़िस्म चढ़ती जवानी
स्वर्णाक्षरों में गढ़ी जाए अमर शूरता की कहानी ।
जो धृष्ट आँख उठे राष्ट्र पर वो शिकार हो हमारा
कश्मीर हिंद का सिरमौर झूमता झंडा हो प्यारा
करांची लाहौर भी हम लेंगे हर जुबां का हो नारा ।
दहक आँखों में बिफरे शोला अंगारा भभक रही
शीश शत्रुओं के काट ला ज़ख़्म सीने अहक रही ।
अहर्निश खड़े शिखर रहो गद्दारों की चूल हिलाने
भारतीय फौजों की तोपें दागें तान अचूक निशाने
मरघट से वक्ष में धड़कन भर सर उन्नत करना है
राष्ट्र की सम्प्रभुता लिए प्राण हथेली पर रखना है
फ़ख़्र मृत्युंजयी वीरों पर हवा,फिजां का कहना है ।
सर्वाधिकार सुरक्षित
शैल सिंह
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